भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) अब बिहार की तर्ज पर पूरे देश में अखिल भारतीय विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान शुरू करने जा रहा है। आयोग इस दिशा में पूरी तरह तैयार है और सोमवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में शाम 4:15 बजे एक बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस अभियान की औपचारिक घोषणा करेगा। माना जा रहा है कि यह पहल देशभर में मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करने की दिशा में अब तक की सबसे व्यापक कार्रवाई साबित होगी।
कई राज्यों में पहले चरण की शुरुआत संभव
सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग पहले चरण में 10 से 15 राज्यों में SIR अभियान चलाने की घोषणा कर सकता है। इन राज्यों में असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल प्रमुख रूप से शामिल हो सकते हैं, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। आयोग की रणनीति है कि आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूचियों को पूरी तरह दुरुस्त किया जाए ताकि पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे।
इन राज्यों में स्थानीय प्रशासन और जिला निर्वाचन अधिकारियों को पहले ही तैयारी के निर्देश जारी किए जा चुके हैं। मतदाता सूची के सत्यापन, नए मतदाताओं के पंजीकरण और मृत या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया इस अभियान के प्रमुख हिस्से होंगे।
आयोग की मंशा: हर मतदाता का सही प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि SIR का उद्देश्य हर पात्र नागरिक का मतदाता सूची में सही नाम और विवरण दर्ज करना है। आयोग का मानना है कि कई राज्यों में अब भी मतदाता सूची में दोहराव, मृत व्यक्तियों के नाम और स्थानांतरित मतदाताओं के रिकॉर्ड जैसी त्रुटियां मौजूद हैं, जिन्हें चुनाव से पहले दुरुस्त करना लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है।
आयोग ने यह भी संकेत दिया है कि SIR अभियान में टेक्नोलॉजी का अधिकतम उपयोग किया जाएगा। इसमें डिजिटल सत्यापन, घर-घर सर्वे, आधार लिंकिंग और मोबाइल ऐप आधारित रिपोर्टिंग जैसे आधुनिक साधनों की मदद ली जाएगी, ताकि प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सटीक हो सके।
बिहार में मिला अनुभव बनेगा मॉडल
गौरतलब है कि बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले SIR अभियान चलाया गया था, जो देश में इस प्रक्रिया का पहला प्रयोग था। हालांकि उस दौरान बिहार में राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव सहित विपक्षी दलों ने आयोग पर मतदाता सूची में गड़बड़ी और पक्षपात के आरोप लगाए थे।
विवादों के बावजूद आयोग ने अपना अभियान जारी रखा और मतदाता सूची को नए सिरे से तैयार किया। नतीजतन, 7.42 करोड़ नामों वाली अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की गई। विपक्ष अभी भी इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रहा है, जहां मामला फिलहाल विचाराधीन है।
बिहार का यह अनुभव अब अन्य राज्यों के लिए ‘मॉडल प्रोजेक्ट’ के रूप में देखा जा रहा है। आयोग का मानना है कि वहां की चुनौतियों और सीखे गए सबक के आधार पर अब बाकी राज्यों में यह प्रक्रिया और अधिक संगठित, पारदर्शी और तकनीकी रूप से मजबूत बनाई जाएगी।
राजनीतिक हलचल के आसार
चुनाव आयोग की सोमवार की घोषणा से पहले ही राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। कई विपक्षी दलों को आशंका है कि बिहार की तरह यह कदम आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक तापमान बढ़ा सकता है। विपक्षी पार्टियाँ इसे ‘चुनावी इंजीनियरिंग’ का नया अध्याय बताकर सवाल उठा सकती हैं, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे लोकतंत्र में सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताकर पेश करने की तैयारी में है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह अभियान यदि पारदर्शी और निष्पक्ष रूप से लागू हुआ, तो यह भारतीय चुनाव व्यवस्था में बड़ा संरचनात्मक सुधार साबित हो सकता है। इससे न केवल मतदाता सूचियों की गुणवत्ता सुधरेगी, बल्कि चुनाव प्रक्रिया पर जनता के भरोसे में भी वृद्धि होगी।
संभावित प्रभाव: सटीक वोटर लिस्ट से पारदर्शी चुनाव तक
SIR अभियान के सफल क्रियान्वयन से भारत के निर्वाचन तंत्र को एकीकृत, डिजिटल और त्रुटिरहित बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। यह अभियान न केवल चुनावी पारदर्शिता को बढ़ाएगा, बल्कि ग्रामीण और शहरी इलाकों में मतदान प्रतिशत को सुधारने में भी सहायक होगा।
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर अब पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। यह ऐलान आने वाले महीनों में भारतीय राजनीति के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।














