भारत का सबसे प्रिय और प्रमुख पर्व दीपावली (Deepavali) अब आधिकारिक तौर पर यूनेस्को की Representative List of the Intangible Cultural Heritage of Humanity में शामिल कर लिया गया है — यह निर्णय 10 दिसंबर को घोषित किया गया। यह ऐलान उसी समय हुआ जब यूनेस्को की अंतर-सरकारी समिति का 20वां सत्र दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में चल रहा था।
राष्ट्र और विश्व में उत्साह का माहौल
यूनिस्को ने इस घोषणा की जानकारी साझा करते हुए भारत को बधाई दी है और सरकारी योजनाओं ने भी इसे एक राष्ट्रीय उपलब्धि बताया है। इस खबर ने देश और विदेश में रहने वाले भारतीयों में उत्साह और गर्व की भावना भर दी है।
प्रधानमंत्री मोदी का सन्देश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि दीपावली हमारे जीवन-मूल्यों, संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है। उन्होंने लिखा कि इस सूची में शामिल होने से दीपावली को वैश्विक स्तर पर और अधिक पहचान मिलेगी और प्रभु श्रीराम के आदर्श लोगों के मार्गदर्शन करते रहें।
भारत की सूची अब कुल 16 परंपराएँ
दीपावली के शामिल होने के साथ भारत की कुल 16 परंपराएँ यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में दर्ज हो चुकी हैं। इससे पहले योग, कुंभ मेला, रामलीला, कोलकाता की दुर्गा पूजा, गरबा, वैदिक मंत्रोच्चार, केरल का मुदियेट्टू, छऊ नृत्य, हिमालयी बौद्ध मंत्र जाप परंपरा, नवरोज, संक्रान्ति/पोंगल/बैसाखी आदि शामिल हैं — और अब दीपावली इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल हुआ है।
People in India and around the world are thrilled.
For us, Deepavali is very closely linked to our culture and ethos. It is the soul of our civilisation. It personifies illumination and righteousness. The addition of Deepavali to the UNESCO Intangible Heritage List will… https://t.co/JxKEDsv8fT
— Narendra Modi (@narendramodi) December 10, 2025
क्यों मायने रखता है यह सम्मान?
यूनेस्को की यह मान्यता केवल समारोहों की मान्यता नहीं है — यह उस जीवंत परंपरा की सुरक्षा, संवर्धन और आने वाली पीढ़ियों तक उसे पहुँचाने के वैश्विक मान्य समर्थन का प्रतीक है। दीपावली की विविध रस्म-रिवाज, सामुदायिक उत्सव, आतिशबाज़ी-चलन, दीप प्रज्वलन और सामाजिक मेलजोल को इस सूची के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संरक्षण का दर्जा मिलता है।
10 दिसंबर, 2025 को लाल किले से घोषित इस ऐतिहासिक निर्णय ने दीपावली को वैश्विक सांस्कृतिक मानचित्र पर एक नई पहचान दी है। यह न सिर्फ भारत के सांस्कृतिक वैभव को बढ़ाता है, बल्कि विश्वभर में भारत की परंपराओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के नए अवसर भी खोलेगा।














