
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की आत्मकथा ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’ के विमोचन समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने प्रजातंत्र, संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गूढ़ और चिंतनशील वक्तव्य दिए। उन्होंने कहा, “मुझे मुफ्त में कुछ भी लेना पसंद नहीं… चुनौतियों का सामना करना मेरी प्रकृति में है। लेकिन सबसे बड़ी जिम्मेदारी है संविधान की रक्षा करना — इसमें कोई कोताही स्वीकार नहीं की जा सकती।”
धनखड़ ने कहा कि जब कोई अपराध जनता की चेतना को झकझोरता है, तो उसे छिपाया नहीं जा सकता, बल्कि कानून के अनुसार उसका समाधान अनिवार्य है। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर की जाने वाली टिप्पणियों को गंभीर चिंता का विषय बताया और कहा, “संविधान टकराव नहीं, संवाद की अपेक्षा करता है।”
‘प्रजातंत्र का सार: अभिव्यक्ति + संवाद’
उपराष्ट्रपति ने प्रजातंत्र की गहराई को स्पष्ट करते हुए कहा, “हम इसलिए प्रजातंत्र कहलाते हैं क्योंकि हमारे यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, और उस अभिव्यक्ति के साथ वाद-विवाद की संस्कृति भी है। लेकिन जब कोई यह सोच ले कि वही सही है और शेष सबकी बात सुनना आवश्यक नहीं — तो वह अभिव्यक्ति नहीं, अहंकार का विकार बन जाती है।”
धनखड़ ने चेताया कि जब अभिव्यक्ति संवाद से कट जाए, तो वेदों में वर्णित ‘अनंतवाद’ समाप्त हो जाता है और उसकी जगह ‘अहम और अहंकार’ ले लेते हैं — जो व्यक्ति और संस्था, दोनों के लिए विनाशकारी होते हैं।
‘राष्ट्रपति और राज्यपाल की शपथ सबसे अलग’
अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने कहा, “संविधान में दो पदों को सर्वोच्च माना गया है — भारत का राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल। इनकी शपथ अन्य सभी पदों से भिन्न होती है। राष्ट्रपति और राज्यपाल ‘संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव’ की शपथ लेते हैं, साथ ही ‘जनता की सेवा’ का व्रत लेते हैं।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन गरिमापूर्ण पदों पर टिप्पणियां करना केवल राजनीतिक विषय नहीं, बल्कि गहन संवैधानिक विमर्श का विषय है।
‘सबसे कठिन चुनौतियाँ अपनों से मिलती हैं’
धनखड़ ने आत्मकथा के शीर्षक से जुड़ते हुए कहा, “मुझे भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और सबसे कठिन चुनौती वह होती है जो अपनों से मिलती है — जिस पर खुलकर बात भी नहीं की जा सकती।” उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन और ग्रंथों की ओर संकट में ध्यान देना हमारा सांस्कृतिक मार्गदर्शन है। “लेकिन उस मार्गदर्शन का उद्देश्य यही है कि कर्तव्य-पथ से विचलन नहीं होना चाहिए।”
समारोह के नायक: आत्मकथा ‘चुनौतियां मुझे पसंद हैं’
यह पूरा कार्यक्रम आनंदीबेन पटेल की जीवन यात्रा पर आधारित आत्मकथा के विमोचन को समर्पित था — जिसमें उनके संघर्ष, सार्वजनिक जीवन के अनुभव और निजी मूल्यों का सार समाहित है। उपराष्ट्रपति का संबोधन इस पुस्तक के मूल भाव को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में गहराई से जोड़ गया।

VIKAS TRIPATHI
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