Tuesday, July 1, 2025
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दामोदर रोपवे: भ्रष्टाचार का केबल कार, श्रद्धालुओं की आस्था पर व्यापार

मैहर के श्रद्धालुओं के लिए एक बुरी ख़बर है, लेकिन दामोदर रोपवे प्रबंधन के लिए शायद यह कोई नई बात नहीं! आखिर जब गड़बड़ियों का पहाड़ खड़ा हो चुका हो, तब मंदिर समिति को कब तक आंखें मूंदकर बैठना चाहिए?

मैहर में माँ शारदा के दर्शन को सुगम बनाने के नाम पर लगाए गए रोपवे का असली कार्य क्या है— श्रद्धालुओं की सेवा या भ्रष्टाचार की सवारी? पिछले 17 सालों से श्रद्धालु इस रोपवे पर सफर तो कर रहे हैं, लेकिन शायद यह सफर सिर्फ़ उनकी भक्ति का नहीं, बल्कि प्रबंधन की बेईमानी का भी है। कलकत्ता की दामोदर रोपवे एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को तो जैसे मुनाफ़े का रस्साकशी खेलना बख़ूबी आता है!

बाई केबल का सपना, मोनो केबल की हकीकत!

मूल अनुबंध के अनुसार, बाई केबल रोपवे लगना था, जिससे एक केबिन में 6 श्रद्धालु बैठ सकते थे। लेकिन हेराफेरी की लहर ऐसी चली कि मोनो केबल रोपवे में बदलकर श्रद्धालुओं को छोटे केबिन में ठूंस दिया गया और मुनाफ़े की गाड़ी दौड़ा दी गई। जब भक्तगण श्रद्धा में डूबे मां शारदा का दर्शन करने आते हैं, तब शायद उन्हें यह नहीं पता होता कि उनकी आस्था के साथ-साथ उनकी जेबों पर भी हाथ साफ़ किया जा रहा है!

कमाई 80 करोड़, मंदिर समिति को सिर्फ़ 19.61 करोड़?

अगर यह कोई धार्मिक गणित का प्रश्न होता, तो शायद इस सवाल के उत्तर में बड़े-बड़े पंडित भी उलझ जाते! लगभग 7.50 करोड़ रुपये की लागत से बने रोपवे की कमाई अब तक 80 करोड़ से अधिक हो चुकी है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, मंदिर समिति को सिर्फ़ 19.61 करोड़ रुपये की रॉयल्टी दी गई! अब सवाल उठता है कि बाकी 60 करोड़ कहां गए? क्या यह भी मां शारदा के किसी चमत्कार का हिस्सा है, जिसे भक्तगण समझ नहीं पा रहे?

रोपवे प्रबंधन की ‘लालच एक्सप्रेस’

रीवा कमिश्नर की जांच रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2009 से अगस्त 2015 तक की आय और 2009 से 2021 तक के अनुमत्य व्यय का कोई भी रिकॉर्ड रोपवे प्रबंधन के पास नहीं मिला। अब यह तो वही बात हो गई कि “भक्तगण कृपया ध्यान दें, आपकी टिकट की रसीद भले ही आपको मिले न मिले, लेकिन प्रबंधन की तिजोरी जरूर भरी होनी चाहिए!”

व्यवस्था के नाम पर दुर्व्यवहार और अपमान

यह कोई आम कंपनी नहीं, बल्कि ‘विशेष व्यवहार’ वाली कंपनी है! मंदिर समिति के अधिकारी हों या शासन द्वारा नियुक्त सदस्य, दामोदर रोपवे प्रबंधन की भाषा शायद कुछ अलग ही है— ‘अपमान, दुर्व्यवहार और उपेक्षा।’ अब सवाल उठता है कि क्या इस कंपनी को वास्तव में रोपवे चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी या ‘मनमानी महोत्सव’ आयोजित करने की अनुमति दे दी गई थी?

अब समय है जागने का!

मंदिर समिति को अब भक्तों के हक़ की इस लूट पर रोक लगानी चाहिए। समिति को जल्द ही दामोदर रोपवे को विदाई देनी चाहिए और किसी साफ-सुथरी छवि वाली कंपनी को नया टेंडर देना चाहिए। अन्यथा, श्रद्धालु तो माँ शारदा की शरण में आ ही जाएंगे, लेकिन मंदिर समिति की छवि भी दामोदर रोपवे के भ्रष्टाचार के पहियों के नीचे दबकर रह जाएगी।

अब प्रश्न यह नहीं कि इस कंपनी को बाहर किया जाए या नहीं, बल्कि यह है कि इस भ्रष्टाचार का केबल आखिर कब कटेगा?

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VIKAS TRIPATHI
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