
कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को 4% आरक्षण देने के फैसले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कड़ी आपत्ति जताई है। आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि धर्म के आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है और डॉ. भीमराव अंबेडकर के विजन का अपमान है।
होसबाले ने कहा कि भारतीय संविधान धर्म आधारित आरक्षण की इजाजत नहीं देता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट्स के उन फैसलों का भी हवाला दिया, जिनमें इस तरह के आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि अतीत में अविभाजित आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों द्वारा मुस्लिम समुदाय को धर्म आधारित आरक्षण देने के प्रयासों को अदालतों ने खारिज कर दिया था।
उन्होंने कहा, “जो भी व्यक्ति धर्म के आधार पर आरक्षण देने की वकालत करता है, वह संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के सिद्धांतों के खिलाफ काम कर रहा है।”
कर्नाटक सरकार का आरक्षण विधेयक क्या है?
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा में एक विवादास्पद विधेयक पारित किया गया, जिसमें मुस्लिम समुदाय को सरकारी ठेकों में 4% आरक्षण देने का प्रावधान है। इस फैसले के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी विरोध जताया है।
कर्नाटक सरकार ने इस आरक्षण को पिछड़े वर्गों में बेरोजगारी को कम करने और सार्वजनिक कार्यों में उनकी भागीदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से उचित ठहराया है। सरकार का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को सशक्त करने में मदद मिलेगी।
कर्नाटक में वर्तमान आरक्षण व्यवस्था
कर्नाटक में अभी तक सरकारी ठेकों में निम्नलिखित आरक्षण व्यवस्था लागू है:
• एससी-एसटी ठेकेदारों के लिए 24% आरक्षण
• ओबीसी वर्ग-1 के लिए 4% आरक्षण
• ओबीसी वर्ग-2A के लिए 15% आरक्षण
इस प्रकार कुल आरक्षण 43% है। अगर सरकार 4% मुस्लिम आरक्षण को लागू करती है, तो सरकारी ठेकों में आरक्षण की कुल सीमा बढ़कर 47% हो जाएगी।
आरएसएस का मानना है कि इस प्रकार का धर्म आधारित आरक्षण समाज में असंतोष और टकराव को जन्म दे सकता है। संगठन ने अदालतों के पूर्व के फैसलों का हवाला देते हुए सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है।

VIKAS TRIPATHI
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