Wednesday, July 2, 2025
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कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने उपासना स्थल अधिनियम पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की टिप्पणियों पर उठाए सवाल

Former CJI Chandrachud:कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार (30 नवंबर, 2024) को पूर्व प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की उपासना स्थल कानून से संबंधित टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उनके बयान ने “भानुमति का पिटारा” खोल दिया है, जिससे एक अंतहीन परेशानी उत्पन्न हो गई है।

रमेश ने दावा किया कि ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान मई 2022 में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उपासना स्थल अधिनियम के संदर्भ में यह टिप्पणी की थी कि यह कानून किसी को भी 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने से नहीं रोकता। इस बयान के बाद से इस मुद्दे पर काफी विवाद और गहमा-गहमी बढ़ गई है।

1991 में उपासना स्थल विधेयक पर राज्यसभा में हुई चर्चा का संदर्भ

जयराम रमेश ने 1991 में उपासना स्थल विधेयक पर राज्यसभा में हुई चर्चा का उल्लेख करते हुए कहा कि इस चर्चा के परिणामस्वरूप उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 को पारित किया गया था। उन्होंने लिखा, “12 सितंबर 1991 को राज्यसभा ने उस विधेयक पर चर्चा की थी, जो बाद में उपासना स्थल अधिनियम के रूप में सामने आया।” रमेश ने कहा कि इस विषय पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के हालिया बयान ने इस मुद्दे को फिर से तूल दिया है।

राजमोहन गांधी का प्रभावशाली भाषण

कांग्रेस नेता ने इस संसदीय चर्चा के दौरान राजमोहन गांधी द्वारा दिए गए भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि यह भाषण शायद राज्यसभा के इतिहास में सबसे प्रभावशाली भाषणों में से एक था। राजमोहन गांधी उस समय संसद के सदस्य थे और उनके भाषण ने इस विषय पर महत्वपूर्ण प्रकाश डाला था। जयराम रमेश ने इसे प्रासंगिक बताते हुए कहा कि यह भाषण आज भी समय की कसौटी पर खरा उतरता है।

उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991

उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत में धार्मिक स्थलों के संरक्षण और उनके धार्मिक चरित्र को बनाए रखने से संबंधित एक महत्वपूर्ण कानून है। यह कानून विशेष रूप से उन धार्मिक स्थलों के विवादों को सुलझाने के लिए लाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 से पहले किसी विशेष धार्मिक समूह से जुड़े थे। इस कानून के तहत यह प्रावधान किया गया है कि स्वतंत्रता के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है, और इसका उद्देश्य धार्मिक स्थलों को राजनीतिक और सामाजिक विवादों से बचाना है।

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