गोरखपुर:— चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने गोरखनाथ मंदिर में आयोजित राष्ट्रीय सुरक्षा सेमिनार में कहा कि चीन के साथ अनसुलझा सीमा विवाद भारत के सामने सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती बना हुआ है, जबकि पाकिस्तान द्वारा चलाया जा रहा ‘छद्म युद्ध’ (proxy war) दूसरी बड़ी चुनौती है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों विरोधी परमाणु-सज्जित हैं, इसलिए पारंपरिक युद्ध के लिए भी उच्च स्तर की तैयारी आवश्यक है।
“पाकिस्तान की रणनीति — धीरे-धीरे चोट पहुँचाना”
सेमिनार में जनरल चौहान ने पाकिस्तान पर तीखा निशाना साधते हुए कहा कि उसकी रणनीति नियमित अंतराल पर भारत को चोट पहुंचाने और देश में अशांति फैलाने की है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए बताया कि सशस्त्र बलों को इस ऑपरेशन के लिए पूरी स्वतंत्रता दी गई थी और इसका उद्देश्य न केवल पहलगाम आतंकी हमले का जवाब देना था बल्कि सीमा पार आतंकवाद के लिये स्पष्ट ‘लक्ष्मण रेखा’ खींचना भी था।
पारंपरिक, साइबर, अंतरिक्ष — बहु-आयामी चुनौतियाँ
चौहान ने कहा कि भविष्य की लड़ाइयाँ सिर्फ ज़मीन-हवा-समुद्र तक सीमित नहीं रहेंगी; अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम भी युद्ध के मैदान बन सकते हैं। ऐसे परिदृश्यों के मद्देनज़र तकनीकी तैयारियाँ और रणनीतिक सोच बदलना आवश्यक है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जब कोई सरकार सेना के प्रयोग के मोड़ पर आती है तो सैन्य नेतृत्व को स्पष्ट रणनीति के साथ आगे बुलाया जाता है।
परमाणु-सज्जित विरोधी और रणनीतिक जटिलताएँ
सीडीएस ने दो दुश्मनों के परमाणु शस्त्रों द्वारा उत्पन्न खतरे पर चिंता जताते हुए कहा कि यही एक लगातार बनी रहने वाली चुनौती है — यह तय करेगा कि हम किस प्रकार का पारंपरिक अभियान चुनते हैं और कैसे तैयारी करते हैं। चौहान ने भविष्य के युद्धों में प्रौद्योगिकी के प्रभाव और उसके जटिल स्वरूपों का भी हवाला दिया।

गोरखनाथ दौरा और सेमिनार का सन्दर्भ
जनरल चौहान गोरखपुर के दो-दिवसीय दौरे पर हैं; उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ गोरखनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना भी की और स्थानीय कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। यह सेमिनार हर वर्ष महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ की पुण्यतिथि पर आयोजित होता है और इस बार राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों पर केंद्रित रहा।
जनरल चौहान के तेवर यह संकेत देते हैं कि रक्षा नेतृत्व चीन-सीमा और पाकिस्तान-प्रायोजित खतरों को प्राथमिकता दे रहा है — और साथ में यह भी स्पष्ट संदेश गया कि तकनीक, अंतरिक्ष व साइबर स्पेस में प्रतिस्पर्धा के लिए सेना और नीति-निर्माताओं को समन्वित रूप से कार्य करना होगा। ऑपरेशन सिंदूर पर उनके बयान ने यह भी दोहराया कि भारत सुरक्षा कार्रवाई के मामले में निर्णायक भूमिका निभाने एवं आवश्यकतानुसार साहसिक कदम उठाने के लिए सक्षम है।














