
नई दिल्ली/पटना:
केंद्र सरकार ने बुधवार को एक बड़ा और बहुप्रतीक्षित फैसला लेते हुए घोषणा की है कि अगली मूल जनगणना में जातिगत गणना को भी शामिल किया जाएगा। यह वही मुद्दा है जिस पर विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमलावर रहा है, खासकर समाजवादी नेता और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, जो इसे अपनी वर्षों पुरानी मांग बताते रहे हैं।
लालू यादव का तंज: “हम जो 30 साल पहले सोचते हैं, संघी आज उसे फॉलो कर रहे हैं”
केंद्र के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए लालू यादव ने कहा,
“जातिगत गणना की बात हम 1996-97 में ही उठा चुके थे, जब संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। हमने तब 2001 की जनगणना में जाति के आधार पर आंकड़े जुटाने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराया था, लेकिन एनडीए की वाजपेयी सरकार ने इसे लागू नहीं किया।”
लालू ने आगे कहा,
“आज जब केंद्र सरकार हमारे ही एजेंडे को लागू कर रही है, तो यह हमारे विचारों की जीत है। हम समाजवादी 30 साल पहले जो सोचते हैं, वो संघी दशकों बाद अपनाते हैं। अभी बहुत कुछ बाकी है — हम इन्हें हमारे एजेंडे पर नचाते रहेंगे।”
तेजस्वी यादव बोले: “अब अगली लड़ाई – पिछड़ों के लिए विधानसभा में आरक्षण”
बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस फैसले को समाजवादियों और उनके संघर्ष की जीत बताया। उन्होंने कहा:
“ये लालू यादव, मुलायम सिंह और तमाम समाजवादियों की जीत है। आज मोदी सरकार हमारे ही एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। हमारी अगली मांग ये होगी कि जैसे दलित और आदिवासियों के लिए सीटें आरक्षित हैं, वैसे ही पिछड़ों और अति पिछड़ों के लिए भी विधानसभा और लोकसभा में आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।”
सरकार का पलटवार: “जातिगत गणना का विरोध तो कांग्रेस ने किया”
सरकार ने जातिगत गणना की घोषणा करते हुए कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। बयान में कहा गया:
“आजादी के बाद कांग्रेस ने कभी भी जातिगत जनगणना की हिम्मत नहीं दिखाई। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में जातिगत जनगणना पर विचार का आश्वासन दिया था, लेकिन केवल एक सामाजिक-आर्थिक सर्वे (SECC) ही कराकर रह गए।”
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि जनगणना संविधान की केंद्रीय सूची (अनुच्छेद 246, क्रमांक 69) का विषय है, इसलिए अब यह काम राजनीतिक दबाव या भ्रम फैलाने वाले राज्य स्तरीय सर्वे के बजाय केंद्र द्वारा पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा।
राजनीतिक महत्व: जाति जनगणना से बढ़ेगा सामाजिक न्याय का आधार या चुनावी समीकरण बदलने की तैयारी?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला ना सिर्फ सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि 2024 के बाद के चुनावी परिदृश्य में ‘पिछड़ा वर्ग’ को केंद्रबिंदु में लाने की रणनीति भी हो सकती है। बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों ने पहले ही अपने-अपने स्तर पर जातिगत सर्वेक्षण कर डाले हैं।
जातिगत जनगणना को लेकर सरकार का यह फैसला राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक तीनों स्तरों पर ऐतिहासिक मोड़ माना जा रहा है। जहां एक ओर आरजेडी इसे अपने पुराने एजेंडे की जीत बता रही है, वहीं सरकार इसे कांग्रेस की विफलता का जवाब मान रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जाति आधारित आंकड़ों के आने के बाद सामाजिक न्याय की राजनीति और आरक्षण व्यवस्था को कौन सी नई दिशा मिलती है।














