नई दिल्ली।
2027 में प्रस्तावित जनगणना को लेकर देश की राजनीति गरमा गई है। भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा ने मुस्लिम समाज से अपील की है कि वे आगामी जनगणना में अपनी वास्तविक जाति का उल्लेख करें, न कि सिर्फ “मुसलमान” लिखवाकर जातीय अस्मिता को ढंकें। पार्टी का दावा है कि इससे पसमांदा मुसलमानों को उनका हक मिलने की दिशा में अहम पहल होगी। वहीं, विपक्षी दल इस कदम को बीजेपी की ‘राजनीतिक चाल’ करार दे रहे हैं।
बीजेपी की पसमांदा रणनीति: आंकड़ों से बराबरी की ओर?
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने कहा कि जाति आधारित आंकड़े सामने आने से पसमांदा मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने और सुधारने में मदद मिलेगी। उन्होंने मुस्लिम समाज से अपील की, “यह धार्मिक जनगणना नहीं है, जातिगत है। हमें इस बार अपनी जाति जरूर बतानी चाहिए। किसी मौलाना के कहने पर सिर्फ ‘इस्लाम’ को जाति बताना पसमांदा समाज के साथ अन्याय है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संस्थानों में आज भी पसमांदा प्रतिनिधित्व न के बराबर है। इस असमानता को चुनौती देने के लिए बीजेपी जनजागरण अभियान शुरू करेगी।
नकवी का तर्क: “85 फीसदी मुस्लिम समाज हाशिए पर क्यों?”
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने समर्थन में कहा, “मुस्लिम समाज के भीतर की सामाजिक असमानताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पसमांदा समुदाय को बराबरी तभी मिलेगी जब उनकी संख्या और स्थिति स्पष्ट रूप से दर्ज हो।” उन्होंने यह भी कहा कि पसमांदा समुदाय मुस्लिम आबादी का लगभग 85 प्रतिशत हैं, लेकिन राजनीतिक लाभ का बड़ा हिस्सा आज भी एक छोटे तबके को जाता है।
विपक्ष का वार: “जाति के नाम पर मुस्लिम समाज को बांटने की साजिश”
जहां बीजेपी इसे समावेशी विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं विपक्ष ने इसे मुस्लिम समाज के भीतर दरार पैदा करने की ‘साजिश’ करार दिया है। कुछ विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह कदम 2024 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण में असफल रहने के बाद बीजेपी की नई रणनीति है।
मुस्लिम संगठनों में भी मतभेद
मुस्लिम समाज के भीतर भी इस मुद्दे पर राय बंटी हुई है।
ऑल इंडिया इमाम एसोसिएशन के प्रमुख मौलाना साजिद रशीदी ने कहा कि मुसलमानों को “बिलकुल अपनी जाति बतानी चाहिए, इससे ही हक की लड़ाई आसान होगी।”
दूसरी ओर, ऑल इंडियन इमाम काउंसिल ने इस अभियान का खुला विरोध करते हुए कहा कि इससे मुस्लिम समाज में जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा और एकता कमजोर होगी।
निचोड़: क्या बीजेपी ‘पसमांदा कार्ड’ खेलने की तैयारी में है?
जनगणना के आंकड़ों से न केवल नीतिगत फैसले तय होते हैं, बल्कि राजनीतिक समीकरण भी बनते और बिगड़ते हैं। पसमांदा मुस्लिमों को केंद्र में रखकर बीजेपी एक नए सामाजिक गठजोड़ की नींव रखने की कोशिश कर रही है, जो उसे भविष्य की चुनावी लड़ाइयों में बढ़त दिला सके।
आने वाले दिनों में यह बहस और तेज होगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह अपील सामाजिक सुधार की ओर कदम होगी या एक चालाक सियासी दांव।