गाज़ीपुर — जिला कृषक अधिकारी उमेश कुमार ने बताया कि किसी भी फसल के बेहतर उत्पादन हेतु नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात 4:2:1 होना चाहिए, जबकि वर्तमान में यह अनुपात बिगड़कर 28:8:1 हो गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि किसान बुवाई के समय अत्यधिक मात्रा में डीएपी का उपयोग कर रहे हैं, जिसमें पोटाश नहीं होता। डीएपी में केवल 46% फास्फोरस और 18% नाइट्रोजन होती है, जिससे फसल को आवश्यक पोटाश नहीं मिल पाता और यह फसल की गुणवत्ता तथा प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।अधिकारी ने बताया कि एनपीके उर्वरक फसलों की जरूरत के अनुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित मिश्रण उपलब्ध कराता है। एनपीके के विभिन्न फार्मुलेशन जैसे 12:32:16, 14:35:14, 19:19:19, 15:15:15, 16:16:16, 10:26:26 आदि किसानों को विकल्प प्रदान करते हैं। पोटाश और सल्फर की उपस्थिति से अनाज, सब्जियों और फलों की गुणवत्ता बेहतर होती है, साथ ही फसल रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।उन्होंने बताया कि विशेष रूप से आलू जैसी कमर्शियल फसलों के लिए पोटाश की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहीं फास्फोरस का दूसरा महत्वपूर्ण उर्वरक एसएसपी 16% फास्फोरस, 11% सल्फर और पर्याप्त कैल्शियम उपलब्ध कराता है, जो सरसों सहित अन्य तिलहनी फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी है। कृषि अधिकारी ने कृषकों से अपील की कि वे डीएपी के स्थान पर एनपीके का संतुलित प्रयोग करें ताकि फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में वृद्धि हो सके।














