रामपुर — समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ और मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेता मोहम्मद आजम खान, जो दस बार विधायक रह चुके हैं, पिछले महीने 23 महीने की जेल की सजा काटकर रिहा हुए। रिहाई के बाद वे फिलहाल राजनीति में कम सक्रिय नजर आ रहे हैं। एक हालिया इंटरव्यू में आजम खान ने अपने अनुभव, अपमान और भविष्य की रणनीति पर खुलकर बात की और कहा कि वे केवल सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से ही मिलेंगे — “अखिलेश के अलावा किसी से भी नहीं मिलूंगा।”
“अगर वह आएँगे तो मुझे खुशी होगी, मेरा सम्मान बढ़ेगा,” आजम ने कहा। उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि बाकी नेताओं से मिलना उनकी प्राथमिकता में नहीं है — “इतने दिनों से मेरे परिवार का हालचाल भी किसी ने नहीं पूछा। मेरी बीवी ईद पर अकेली बैठी रो रही थी — किसी ने पूछा क्या?” उनकी कड़ी टिप्पणियों से स्पष्ट हुआ कि जेल में रहे दिनों की कड़वी यादें और उपेक्षा का आहत भाव अभी भी कायम है।
रिहाई के बाद रामपुर की सियासत पर भी आजम ने तीखे शब्द बोले। उन्होंने कहा कि उनकी अनुपस्थिति में रामपुर सदर विधानसभा सीट भाजपा के आकाश सक्सेना के हाथ चली गई — “सक्सेना की कोई प्रतिद्वंदी जैसी हैसियत नहीं थी। मैं भी कभी महलों का प्रतिद्वंदी हुआ करता था और मुझे उसकी कीमत चुकानी पड़ी।” आजम ने उपचुनाव में हुए घटनाक्रमों और मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए, कहा कि अगर सच्चाई समय पर उजागर हुई होती तो परिणाम अलग हो सकते थे।
पारिवारिक व राजनीतिक रिश्तों पर आजम ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की तुलना भी की। उन्होंने मुलायम को पार्टी का जन्मदाता बताया जिसने सपा को जमीन से ऊपर उठाया, जबकि अखिलेश को “अब पार्टी संभालने वाला सबसे सुसंस्कृत नेता” कहा। निजी सम्मान और रिश्तों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अखिलेश उनके प्रति सम्मान दिखाते आए हैं और वे इसका आभारी हैं।
बिहार की सियासी बहस — SIR और वोट चोरी के आरोप — पर आजम ने इसे “बेमतलब” बताया और कहा कि असली मुद्दों की जड़ तक कोई नहीं पहुंच रहा। उन्होंने राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव को सलाह दी कि रामपुर के 2022 के उपचुनाव में जो हुआ उसे वे प्रतीक बनाकर लड़ें, ताकि मतदाता सूची और अन्य प्रक्रिया संबंधी गड़बड़ियों पर ध्यान दिया जा सके।
इंटरव्यू में आजम ने अपनी आत्मनिर्भरता पर भी जोर दिया — “मुझे किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ी — न कल, न आज, और अगर ईश्वर की कृपा रही तो कल भी नहीं।” साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि वे निजी दर्द और पुरानी रंजिशें उभारना नहीं चाहते और इसलिए सपा-गठबंधन को जारी रखना ही समझदारी होगी — “बंद मुट्ठी से बेहतर खुली उंगलियाँ हैं।”
आजम ने कांग्रेस के प्रति अपनी पुरानी आलोचनात्मक रुख की भी पुष्टि की, पर कहा कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पुराने झगड़ों को कुरेदने की जरूरत नहीं है क्योंकि सामने एक और बड़ा खतरा है। उनकी इस अनुमानित रणनीति का संकेत है कि वे गठबंधन को प्राथमिकता देते हुए विपक्षी ताकतों को एकजुट रखने पर जोर दे रहे हैं।
निष्कर्षतः, जेल से वापस आने के बाद आजम खान का रुख ठोस और स्पष्ट है: व्यक्तिगत सम्मान, परिवार की उपेक्षा का आक्रोश, और पार्टी-हित में गठबंधन की वकालत। उन्होंने साफ कर दिया है कि अभी उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ सीमित रहेंगी और वे केवल उन्हीं नेताओं से खुलकर जुड़ना चाहते हैं जिन पर उनका भरोसा कायम है — सबसे ऊपर, अखिलेश यादव।