
भगवान श्रीकृष्ण की ऐतिहासिक नगरी द्वारका, जो समुद्र में समा गई थी, उसके सभी पहलुओं की गहराई से जांच के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने व्यापक खोज अभियान शुरू किया है। इस अभियान का नेतृत्व एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक (पुरातत्व) प्रो. आलोक त्रिपाठी कर रहे हैं। उनकी अगुवाई में पांच पुरातत्वविदों की एक टीम ने मंगलवार (18 फरवरी) को द्वारका तट पर पानी के भीतर खोजबीन शुरू की।
एएसआई की टीम कर रही ऐतिहासिक जांच
इस पुरातत्वीय खोज दल में निदेशक एचके नायक, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. अपराजिता शर्मा, पूनम बिंद और राजकुमारी बारबिना शामिल हैं। इस बार की खोज में महिला पुरातत्वविदों की संख्या अधिक है, जो एएसआई के लिए एक नई पहल मानी जा रही है। टीम ने अपनी प्रारंभिक जांच के लिए गोमती क्रीक के पास एक क्षेत्र का चयन किया है। इस अभियान का उद्देश्य द्वारका नगरी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक साक्ष्य एकत्र करना है।
द्वारका में अपतटीय और तटवर्ती खुदाई
एएसआई के अंडरवाटर पुरातत्व विंग (यूएडब्ल्यू) को हाल ही में पुनर्जीवित किया गया है और इसे द्वारका और बेट द्वारका में अपतटीय सर्वेक्षण और जांच करने की जिम्मेदारी दी गई है। 1980 के दशक से यह विंग भारत के पानी के नीचे पुरातत्व अनुसंधान में सबसे आगे रहा है। 2001 से अब तक इसने बंगाराम द्वीप (लक्षद्वीप), महाबलीपुरम (तमिलनाडु), लोकतक झील (मणिपुर) और एलीफेंटा द्वीप (महाराष्ट्र) में अन्वेषण किया है। द्वारका में इससे पहले 2005 से 2007 तक अपतटीय और तटवर्ती खुदाई की जा चुकी है।

समुद्र में मिली 560 मीटर लंबी दीवार
प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रो. एसआर राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार की खोज की थी। उनके शोध में 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक के बर्तन मिले, जो इस नगरी की प्राचीनता को दर्शाते हैं। इस दौरान सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े कई अवशेष भी प्राप्त हुए थे।
नौसेना के सहयोग से निकाले गए अवशेष
2005 और 2007 में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने एएसआई के निर्देशन में समुद्र में डूबी द्वारका नगरी के अवशेषों के नमूने निकाले थे। इस दौरान समुद्र की गहराई से काटे-छंटे पत्थर और करीब 200 पुरातात्विक नमूने एकत्र किए गए थे। खोज के दौरान समुद्र के भीतर चूना पत्थर के विशाल खंड भी मिले थे, जो इस नगरी के अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की पहल
एएसआई के मुताबिक, यह खोज भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस अभियान से द्वारका नगरी के ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करने और उसकी प्रमाणिकता को साबित करने में मदद मिलेगी। इस खोज से श्रीकृष्ण की नगरी से जुड़े रहस्यों पर नई रोशनी पड़ने की उम्मीद है।