सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे एक बार फिर अनशन करने की तैयारी में हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर लोकायुक्त विधेयक को तुरंत लागू करने की मांग की है। अन्ना ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने कानून के क्रियान्वयन को लेकर कोई कदम नहीं उठाया, तो वह 30 जनवरी 2026 से राळेगण सिद्धी स्थित यादव बाबा मंदिर में अनशन शुरू कर देंगे।
विधानसभा और विधान परिषद में पारित होने के बावजूद लागू नहीं हुआ कानून
अपने पत्र में अन्ना ने लिखा है कि सरकार ने आश्वासन देने के बाद भी लोकायुक्त विधेयक को लागू नहीं किया।
28 दिसंबर 2022: विधानसभा में विधेयक पारित
15 दिसंबर 2023: विधान परिषद में मंजूरी
दोनों सदनों से पारित होने के बावजूद दो साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन कानून जमीन पर लागू नहीं हुआ। अन्ना का कहना है कि सरकार की इस देरी से उसकी नीयत पर सवाल उठते हैं।
सरकार की इच्छाशक्ति पर उठाए सवाल
अन्ना ने आरोप लगाया कि लोकायुक्त कानून को लागू न करना सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति और टालमटोल की मंशा को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि वह कई बार सरकार को इस संबंध में पत्र और मौखिक आग्रह कर चुके हैं, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिली है। उनके अनुसार, “सरकार जानबूझकर इस कानून को लागू करने में देरी कर रही है, इसलिए अनशन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।”
2011 का आंदोलन, जब हिला दी थी केंद्र सरकार
यह पहला मौका नहीं है जब अन्ना हजारे अनशन के माध्यम से बड़ा जनदबाव बनाने जा रहे हैं।
2011 में उन्होंने यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिल्ली में अनशन किया था।
उनकी मांग पर सरकार को लोकपाल विधेयक के लिए कमेटी बनाने की अधिसूचना जारी करनी पड़ी और अन्ना ने पांचवें दिन अपना अनशन तोड़ा।
लेकिन 15 अगस्त तक विधेयक पास न होने पर अन्ना ने 16 अगस्त को फिर से अनशन शुरू किया। इस बार आंदोलन देशव्यापी बन गया और जनदबाव के आगे सरकार को लोकपाल बिल लोकसभा में लाना पड़ा।
अन्ना के आंदोलन से उभरे कई चेहरे
2011 का आंदोलन भारत की राजनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ गया।
किरण बेदी, जनरल वीके सिंह, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, अनुपम खेर जैसे बड़े नाम इस आंदोलन से जुड़े।
इसी आंदोलन से अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, शाजिया इल्मी जैसे चेहरे उभरे, जिन्होंने आगे चलकर आम आदमी पार्टी की नींव रखी।
विपक्ष का मिल सकता है समर्थन
अन्ना के आगामी अनशन को विपक्षी दलों का समर्थन मिलने की संभावना जताई जा रही है। स्वयं अन्ना राजनीतिक दलों से दूरी रखते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनका आंदोलन हमेशा से व्यापक जनसमर्थन जुटाता रहा है।














