Thursday, September 18, 2025
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“बेगूसराय से अमित शाह का चुनावी बिगुल — घुसपैठियों का खतरा, SIR और NDA की जीत का दावा”

बेगूसराय, 18 सितम्बर 2025 — केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा कि इस साल अक्टूबर–नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में एनडीए पूर्ण बहुमत के साथ वापसी करेगा और विपक्षी नेतृत्व पर तीखे आरोप लगाए। शाह ने खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी की “वोटर अधिकार यात्रा” पर निशाना साधते हुए कहा कि वह असल में “घुसपैठियों” के हितों के लिए अभियान चला रहे हैं और यदि INDIA (विपक्षी) गठबंधन सत्ता में आया तो बिहार के प्रत्येक जिले में घुसपैठियों की तादाद बढ़ जाएगी।

शाह के मुख्या दावे और उद्धरण

अमित शाह ने कार्यकर्ताओं से कहा कि एनडीए इतनी बड़ी जीत हासिल करेगा कि विपक्ष के नेता “तेजस्वी प्रसाद यादव अगली बार चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे,” और कार्यकर्ताओं से पूरे राज्य में जाकर मतदाताओं को जागरूक करने का आग्रह किया।

शाह ने राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ को कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह यात्रा “घुसपैठिए बचाओ यात्रा” के समान थी और इसका उद्देश्य असल में बांग्लादेशी घुसपैठियों के नामों को बचाना है—खासकर Special Intensive Revision (SIR) के दौरान हटाये जा रहे नामों को लेकर। उन्होंने यह भी कहा कि SIR से मतदाता सूची की “शुद्धि” होगी।

भाषण में शाह ने चेतावनी दी: “अगर वे (विपक्षी दल) संयोग से भी सत्ता में आ गए, तो बिहार का हर जिला घुसपैठियों से भर जाएगा,” — यह कथन बाद में चुनावी दांव-पेंच का प्रमुख हिस्सा बन गया।

SIR का संदर्भ और राजनीतिक चर्चा

Special Intensive Revision (SIR) — जो कि चुनाव आयोग और राज्य स्तर पर चलाये जाने वाले मतदाता सूची के पुनरीक्षा अभ्यासों में से एक है — को केंद्र और भाजपा नेतृत्व ने इस चुनाव चक्र में “मतदाता सूची की शुद्धि” के रूप में पेश किया है। शाह ने SIR के परिणामों का हवाला दे कर कहा कि कई संदिग्ध नाम हटाये गये हैं और विपक्ष इसकी आलोचना करके एक कथित गलत कहानी गढ़ रहा है। विपक्षी दलों ने इस तरह के दावों पर सवाल उठाये हैं और कहा है कि चुनाव आयोग के साथ मिलकर राजनीतिक विवाद बना कर मतदाताओं के भय का राजनीतिकरण किया जा रहा है।

विकास और वित्तीय दावे

शाह ने केंद्र सरकार द्वारा बिहार को प्रदान की गई वित्तीय सहायता का ब्योरा देते हुए कहा कि मोदी-नरेन्द्र नेतृत्व में राज्य को पिछले दशक में अधिक संसाधन मिले हैं और केंद्र का सहयोग बिहार के विकास का आधार रहा है। इस मंच पर उनके हवाले से यह भी कहा गया कि 2014–24 के बीच केंद्र से बिहार को दिए गए संसाधनों का आकार पिछली अवधि (2004–14) से कहीं अधिक रहा है — ऐसे आँकड़े और दावे पहले भी केंद्र की प्रेस रिलीज़ और भाजपा के बयानों में सामने आ चुके हैं।

विपक्ष और अन्य प्रतिक्रियाएँ

विषय पर विपक्षी नेताओं और कुछ नागरिक मंचों ने शाह की भाषा की निन्दा की है और इसे चुनावी भय का उपयोग कर वोट बैंक बनाने की कोशिश बताया। RJD तथा कांग्रेस के नेताओं ने SIR के हवाले से उठाये जाने वाले आरोपों की पोल खोलने और अपने समर्थन को मजबूत करने की रणनीति जारी रखी है। कुछ मीडिया रिपोर्टों ने नोट किया है कि ‘घुसपैठ’ बहस इस चुनाव में भाजपा की प्रमुख चुनावी रणनीतियों में से एक बन चुकी है और विपक्ष उसे पलटने की कोशिश कर रहा है।

चुनावी रणनीति — क्या बदलता है मैदान?

अमित शाह ने स्पष्ट निर्देश दिये कि पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर मतदाताओं को SIR, घुसपैठ के खतरे और केंद्र-राज्य सहयोग से हुए विकास कार्यों के बारे में बतायें — खासकर आंगनवाड़ी, महिला कल्याण, युवाओं के लिये योजनाओं तथा स्थानीय लाभों पर जोर देने के लिये कहा गया। इस तरह के निर्देश यह संकेत देते हैं कि भाजपा चुनाव के आखिरी चरणों में जमीन पर सक्रियता बढ़ा कर मतदाताओं के बीच भय तथा विकास दोनों मुद्दों को एक साथ रखने की रणनीति पर जोर दे रही है।

विश्लेषण — क्या असर होगा?

1.भावनात्मक संदेश बनाम व्यवहारिक मुद्दे: घुसपैठ का मुद्दा डर और सुरक्षा भावना को टार्गेट करता है — यह कुछ समूहों में मत प्रेरित कर सकता है, पर विकास, बेरोज़गारी और लोक-सेवाओं से जुड़े मुद्दे भी निर्णायक रहेंगे।

2.SIR की प्रक्रिया और पारदर्शिता: यदि SIR के आंकड़े सार्वजनिक और ट्रांसपरेंट रखे गये तो आरोप-प्रत्यारोप का दायरा कम होगा; वरना यह मुद्दा चुनावी बहस का केंद्र बना रहेगा।

3.विपक्ष का सामरिक विकल्प: विपक्ष के लिये चुनौती यह है कि वह SIR जैसे संवेदनशील मामलों पर समुचित तथ्य और प्रमाण के साथ अपनी बात रखे, वरना उसे भावनात्मक हमले से पीछे हटना पड़ेगा।


अमित शाह का बेगूसराय भाषण इस चुनावी चरण में भाजपा की रणनीतिक रूपरेखा और संदेश-रूपरेखा दोनों को स्पष्ट करता है — सुरक्षा/घुसपैठ को लेकर चेतावनी देना और साथ ही विकास तथा केन्द्र-राज्य सहयोग के दावों को रेखांकित करना। दोनों ही पहलुओं का असर चुनावी अखाड़े में मतदाता-मानस पर निर्भर करेगा।

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VIKAS TRIPATHI
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