
AAP’s Defeat in Delhi Elections: दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से महज 1.89 लाख वोट कम मिले, जिससे पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। इस हार की समीक्षा में कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन अगर आप कुछ रणनीतिक पहलुओं को बेहतर ढंग से संभाल पाती, तो शायद नतीजे कुछ और होते।
केवल 1.89 लाख वोटों से पिछड़ी ‘आप’
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भाजपा को कुल 43,23,110 वोट मिले, जबकि आम आदमी पार्टी को 41,33,898 वोट मिले। यानी दोनों पार्टियों के बीच सिर्फ 1,89,212 वोटों का अंतर रहा।
अगर वोट प्रतिशत की बात करें, तो भाजपा को 45.56% और आप को 43.57% वोट मिले। दोनों के बीच केवल 2% का अंतर रहा, जो दर्शाता है कि मुकाबला बेहद करीबी था।
कांग्रेस ने ‘आप’ का गणित बिगाड़ा
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को 6 लाख वोट मिले, लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। खास बात यह रही कि कांग्रेस ने 19 विधानसभा सीटों पर आप का खेल खराब कर दिया।
विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस को जिन सीटों पर जितने वोट मिले, उससे कम अंतर से आम आदमी पार्टी वहां चुनाव हार गई। यदि कांग्रेस के ये वोट आम आदमी पार्टी को मिल जाते, तो चुनावी नतीजे पूरी तरह बदल सकते थे।
नोटा और निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी खेल बिगाड़ा
दिल्ली चुनाव में कुल 2.13 लाख वोट नोटा, निर्दलीय और अन्य छोटी पार्टियों को मिले।
• नोटा: 53,000 वोट
• एआईएमआईएम: 72,000 वोट
• निर्दलीय व अन्य छोटी पार्टियां: 87,000 वोट
यदि ये वोट आम आदमी पार्टी के पक्ष में आ जाते, तो चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदल सकता था।
एआईएमआईएम (असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी) ने भी दिल्ली चुनाव में कई सीटों पर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई। ओवैसी ने ‘आप’ पर आरोप लगाया था कि वह मुस्लिम वोट लेती है लेकिन उनके मुद्दों पर ध्यान नहीं देती। इसका नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम बहुल इलाकों में आप को नुकसान हुआ।
किन सीटों पर हार का सीधा असर पड़ा?
- मुस्तफाबाद
• बीजेपी उम्मीदवार: मोहन सिंह बिष्ट (जीते)
• आप उम्मीदवार: हार
• एआईएमआईएम उम्मीदवार: ताहिर हुसैन (13,000 वोट)
यहां आप की हार का अंतर 17,000 वोट था, जबकि ओवैसी की पार्टी को 13,000 वोट मिले। अगर ये वोट आप को मिलते, तो जीत तय थी।
- जंगपुरा
• बीजेपी उम्मीदवार: जीत
• आप उम्मीदवार: मनीष सिसोदिया (675 वोट से हारे)
• नोटा वोट: 441
• निर्दलीय व अन्य: 522 वोट
यहां हार का अंतर सिर्फ 675 वोट था, जबकि नोटा और निर्दलीयों को 1000 से ज्यादा वोट मिले। अगर ये वोट आप को मिल जाते, तो नतीजा उलट सकता था।
- संगम विहार
• बीजेपी उम्मीदवार: जीत
• आप उम्मीदवार: दिनेश मोहनिया (344 वोट से हारे)
• नोटा वोट: 537
• निर्दलीय व अन्य: 1000 वोट
यहां हार का अंतर मात्र 344 वोट था, जबकि नोटा और निर्दलीयों को मिले 1500 वोट ने चुनावी समीकरण बदल दिया।
- त्रिलोकपुरी
• बीजेपी उम्मीदवार: रविकांत (जीते)
• आप उम्मीदवार: अंजना प्राचा (392 वोट से हारीं)
• नोटा वोट: 683
यहां भी हार का अंतर 392 वोट था, जबकि नोटा को 683 वोट मिले।
- मेहरौली
• बीजेपी उम्मीदवार: जीत
• आप उम्मीदवार: महेंद्र चौधरी (1782 वोट से हारे)
• निर्दलीय उम्मीदवार: बाबा बालकनाथ (9731 वोट)
निर्दलीय उम्मीदवार ने 9731 वोट काटे, जिससे आप की हार हो गई।
- तिमारपुर
• बीजेपी उम्मीदवार: जीत
• आप उम्मीदवार: सुरिंदर सिंह बिट्टू (1168 वोट से हारे)
• नोटा और निर्दलीय को मिले वोट: 1500+
यहां अगर निर्दलीय और नोटा के वोट आप को मिल जाते, तो जीत संभव थी।
निष्कर्ष: आप की हार किन कारणों से हुई?
1. कांग्रेस फैक्टर: कांग्रेस ने 19 सीटों पर आप को नुकसान पहुंचाया।
2. नोटा और निर्दलीय वोट: 2.13 लाख वोट बंट गए, जिससे आप को नुकसान हुआ।
3. एआईएमआईएम की सेंध: मुस्लिम वोट बंटने से आप को नुकसान हुआ।
4. छोटी हारों का बड़ा प्रभाव: कई सीटों पर 500-1000 वोट के अंतर से हार हुई, जिसे रोका जा सकता था।
अगर आम आदमी पार्टी कांग्रेस से कोई समझौता कर लेती या निर्दलीयों और छोटी पार्टियों को अपने पक्ष में कर पाती, तो दिल्ली की सियासत का नतीजा कुछ और हो सकता था। इन छोटी-छोटी हारों ने मिलकर भाजपा को दिल्ली में सत्ता दिला दी।