
एक समय था जब जरायम और सियासत की दुनिया में माफिया मुख्तार अंसारी की तूंती बोलती थी। माफिया खुद तो जीतता ही था साथ-साथ अपने करीबियों का भी चुनाव प्रबंधन में विशेष भूमिका निभाता था। पूर्वांचल में 40 सालों तक अंसारी ब्रदर्स का दबदबा रहा वो था तब राजनीति और अपराध की दुनिया में माफिया मुख्तार अंसारी का रसूख चलता था। चाहे खुद का चुनाव हो या भाई, बेटे या भतीजे का, सभी में उसका मजबूत प्रबंधन और जनता में हनक जीत की राह प्रशस्त करती थी।
अफजाल अंसारी ने 1985 से मुहम्मदाबाद विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना शुरू किया था। इसी चुनाव से मुख्तार अंसारी का दबदबा दिखने लगा था। वह जरायम की दुनिया में उतर चुका था। तब से लेकर 2017 में भाजपा सरकार बनने तक मुख्तार का भय हर चुनाव में हावी रहता।मुख्तार के भय का आलम यह था कि 2004 के लोकसभा चुनाव के शुरू होते ही फाटक से चंद कदम की दूरी पर क्रय-विक्रय केंद्र पर भाजपा समर्थक झिलकू गिरहार की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। उसके स्वजन का आरोप था कि उसकी लाश को घुमाया गया।
जिप्सी पर सवार होकर भीड़ पर मुख्तार ने की थी फायरिंग
दहशत फैलाने के लिए मुख्तार के लोगों ने खुली जिप्सी पर सवार होकर भीड़ पर फायरिंग भी की थी। कई लोगों को गोली लगी थी। शाम होते-होते दूसरी हत्या मोहनपुरा निवासी शोभनाथ राय की हुई थी। शोभनाथ भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा के भतीजे थे। वह मतदान के बाद पार्टी कार्यालय आ रहे थे।
मुहम्मदाबाद रेलवे फाटक के पास उन पर हमला हुआ था। हालांकि, शासन सत्ता में पकड़ की बदौलत दोनों मामलों में मुख्तार के खिलाफ रिपोर्ट तक नहीं लिखी गई थी। कहने वाले कहते हैं कि चुनाव समाप्त होने पर मुख्तार अंसारी ने खुली जिप्सी में 50 लोगों के साथ घूमकर दहशत फैलाया था। चुनावों में मुख्तार की दखल किसी से छिपी नहीं रही।
मुख्तार ने जेल में रहते जीता था तीन चुनाव
मुख्तार अंसारी पांच बार विधायक रहा। 15 साल से ज्यादा वक्त जेल में काटा। 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में मुख्तार अंसारी को जीत मिली। तीन विधानसभा चुनावों में मुख्तार अंसारी ने जेल में रहकर ही जीत हासिल की थी।
उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और राजनेता मुख्तार अंसारी ने अपने काल का चेहरा 20 वर्ष पहले ही देख लिया था। उस दिन से ही उनके आंखों में डर का साया बिछा था। शनिवार को, उस डर का समाप्ति हो गई, लेकिन उससे पहले ही वह अपने आप को मिटाने के लिए तैयार था, लेकिन वह अपनी इच्छा का पूरा नहीं कर पाया। सन् 2008 में, उन्होंने योगी आदित्यनाथ के काफिले पर हमला किया था, जिसमें 56 लोगों की मौत हो गई थी। योगी आदित्यनाथ बच गए, लेकिन मुख्तार अंसारी का डर और उसका असीम असन्तुलित जीवन बन गया।
साल 2008 की 7 सितंबर को, योगी आदित्यनाथ का काफिला पूर्वांचल के अपराध का गढ़ आजमगढ़ की ओर बढ़ रहा था। काफिले में 100 से अधिक कारें और 1000 से अधिक मोटरसाइकिलें थीं।अहमदाबाद के बम धमाकों के बाद, योगी आदित्यनाथ चिंतित थे। 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में 70 मिनट में 21 बम धमाके हुए थे, जिसमें 56 लोगों की मौत हो गई थी, 200 से अधिक घायल हो गए थे।
अहमदाबाद बम धमाकों के कुछ आरोपी आजमगढ़ से पकड़े गए थे, और उस समय आजमगढ़ मुख्तार अंसारी का कब्ज़ा था। वह उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव के संरक्षण में था, न कोई पुलिस का डर, न कानून का भय, सब उसकी जेब में था। बड़े रसूखदार, न्यायाधीश, पुलिस अधिकारी, सभी मुख्तार के जेब में होते थे। उसी आजमगढ़ में गोरखपुर से तब के 3 बार के सांसद योगी आदित्यनाथ बड़ी रैली करने जा रहे थे। रैली में एक लाख से अधिक लोगों का संघटन होने वाला था।
यह उस समय का समय था जब पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ का उदय हो रहा था, और मुख्तार का आतंक उसके विरोधियों में हिन्दू समाज को उनका साथ देने के लिए प्रेरित कर रहा था। 2004 में, योगी आदित्यनाथ ने तीसरी बार गोरखपुर से लोकसभा चुनाव जीता था। पूर्वांचल के हिन्दू समाज को एकत्रित करने के लिए, 2002 में योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी की स्थापना कर दी गई थी। एक ओर, लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ की जीत का अंतर बढ़ रहा था, जबकि दूसरी ओर हिन्दू युवा वाहिनी में लोगों की बड़ी संख्या जुड़ रही थी।
मुख्तार अंसारी को योगी आदित्यनाथ की यह लोक प्रियता न तो पसंद आ रही थी और न ही मुलायम सरकार को। जब योगी 2008 में अपने काफिले के साथ आजमगढ़ की ओर बढ़ रहे थे, तब उन्हें कहीं पता नहीं था कि कुछ ही पलों में उनके काफिले पर जानलेवा हमला होने वाला है, क्योंकि मुख्तार अंसारी के गुंडे उनके काफिले का इंतजार कर रहे थे।
जैसे ही काफिला आजमगढ़ से थोड़ा पहले टकिया के पास पहुंचा दोपहर 1 बजकर 20 मिनट पर, एक पत्थर काफिले की सातवीं गाड़ी पर आकर लगा। उसके बाद, पत्थरों की बारिश शुरू हो गई और चंद पलों में ही पेट्रोल बम हमला किया गया। यह एक समन्वित हमला था, जिसकी पहले ही अच्छी तरह से योजना बनाई गई थी। इससे योगी के समर्थक उलझ गए। काफिला तीन हिस्सों में विभाजित हो गया, छह वाहन आगे चले गए और बाकी पीछे रह गए। इसके बाद, हमलावरों ने वाहनों को घेरकर हमला किया। लेकिन उनका निशाना योगी आदित्यनाथ पर था, जिन्हें अब तक ढूंढा नहीं जा सका था। योगी के न मिलने के कारण, हमलावर और भी अधिक उग्र हो गए। जब काफिले के लोग होश में आए, तो सभी के मुंह से एक ही सवाल निकला – “योगी कहां हैं?”
हमले की सूचना मिलते ही, पुलिस स्टेशनों से टीमें भेजी गईं। इस बीच, आस-पास के विक्रेता मदद के लिए दौड़े और गाड़ियों के आस-पास सुरक्षा घेरा बना लिया गया। सिटी सर्किल अफसर शैलेन्द्र श्रीवास्तव ने त्वरित कार्रवाई का आदेश दिया। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन योगी का पता अब तक नहीं चला था। उनकी खोज तेज कर दी गईलेकिन योगी तो पहले ही बहुत आगे निकल चुके थे और बाकी गाड़ियों के आने का इंतजार कर रहे थे। दरअसल योगी को काफिले की पहली गाड़ी में शिफ्ट कर दिया गया था। यह सब पीडब्लूडी के गेस्ट हाउस में हुआ, जहां काफिला कुछ देर के लिए रुका था। अंतिम समय में हुए इस बदलाव की जानकारी हमलावरों को नहीं थी।