रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 साल के अंतराल के बाद भारत का आधिकारिक राजकीय दौरा कर रहे हैं। वे 4–5 दिसंबर को भारत आएंगे और 23वें India–Russia वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे — यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर हो रही है और दोनों पक्ष कई अंतर-सरकारी तथा वाणिज्यिक समझौतों पर बातचीत और हस्ताक्षर की उम्मीद कर रहे हैं।
दौरे का एजेंडा — क्या-क्या चर्चित होगा
इस वार्षिक शिखर सम्मेलन का एजेंडा पारंपरिक रूप से व्यापक होता है — राजनीतिक संवाद, रक्षा सहयोग, ऊर्जा और व्यापार, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, और सांस्कृतिक तथा मानवीय क्षेत्र। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस बार सुरक्षा-रणनीति और रक्षा खरीद (जैसे S-400 जैसी प्रणालियाँ), ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक सत्ता-संतुलन (विशेषकर यूक्रेन संकट से जुड़ी स्थितियां) चर्चा के केंद्रीय मुद्दे होंगे। कई MoU और व्यापार/रक्षा समझौते साइन किए जाने की घोषणा अपेक्षित है। The
ICC (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय) का वारंट और उसकी व्यावहारिक मान्यता
ICC ने मार्च 2023 में यूक्रेन से बच्चों के कथित अवैध निर्वासन के आरोप में पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था — यह वारंट ICC के आधिकारिक फैसले के रूप में दर्ज है। परन्तु ICC की गिरफ्तारी-प्रक्रिया पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करती है: अदालत अपने आप किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने में सक्षम नहीं है; वह सदस्य देशों से सहयोग की उम्मीद करती है।
क्या यह वारंट भारत पर लागू होता है? — कानूनी और व्यवहारिक मायने
सरल शब्दों में — नहीं, भारत पर इस वारंट को लागू करने का वैधानिक दायित्व नहीं है। इसका कारण यह है कि ICC (Rome Statute) के साथ 124 से अधिक देश जुड़े हुए हैं, लेकिन भारत उन देशों में नहीं है — भारत ने Rome Statute पर हस्ताक्षर/रटिफिकेशन नहीं किया है और इसलिए ICC के आदेशों को लागू करने का क़ानूनी दायित्व भारत पर नहीं बनता। ICC की निर्भरता सदस्य-राज्यों के सहयोग पर है; जब कोई आरोपी ICC के किसी सदस्य देश के क्षेत्र में प्रवेश करता है तो उस सदस्य देश से गिरफ्तारी-हस्तांतरण की अपेक्षा की जाती है — पर ऐसा तभी होता है जब वह देश Rome Statute का पार्ट होता है।
इतिहास में भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं — 2015 में सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति ओमर अल-बशीर जिन पर ICC की गिरफ्तारी वारंट थे, भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली आए थे; तब भी भारत ने उन्हें आगमन के दौरान हिरासत में नहीं लिया क्योंकि वह ICC का सदस्य नहीं था और कानूनी दायित्व मौजूद नहीं था। इस तरह के मामलों ने अदालत की निर्भरता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बीच असंतुलन को उजागर किया है।
क्या भारत किसी कार्रवाई के लिए बाध्य है? — नीतिगत और राजनीतिक पहलू
कानूनी तौर पर बाध्यता न होने के बावजूद, किसी भी उच्च-स्तरीय राजकीय दौरे पर राष्ट्रों के बीच व्यवहारिक और राजनयिक विचार ज़्यादा मायने रखते हैं — सुरक्षा, अतिथि-राष्ट्र की गरिमा, द्विपक्षीय हित और वैश्विक प्रतिक्रियाओं का आंकलन। कई बार देशों ने राजनीतिक कारणों से ICC आदेशों पर कार्रवाई नहीं की है; दूसरी ओर, ICC के सदस्य देशों के साथ भारत के रिश्तों को देखते हुए दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय दबाव भी झेलना पड़ सकता है। इस दौरे के दौरान भारत-रूस साझेदारी पर ध्यान केंद्रित रहेगा और भारत को एक संतुलित कूटनीतिक संवाद चलाना होगा।
पुतिन भारत कैसे आएंगे — रूट के बारे में तकनीकी और लॉजिस्टिक बातें
रूसी राष्ट्रपति की उड़ान के लिए तकनीकी और राजनयिक व्यवस्थाएँ विशेष होती हैं — विशेष एयरक्राफ्ट, कड़ी सुरक्षा, और उड़ान-इजाज़त (overflight clearances) की पूर्व-व्यवस्था. पारंपरिक वाणिज्यिक रूट के अलावा कूटनीतिक कारणों या एयरस्पेस प्रतिबंधों के चलते अलग-अलग मार्ग चुने जा सकते हैं। संभावित रूटों के उदाहरण जिनका ज़िक्र हो रहा है:
मॉस्को → तेहरान → दिल्ली (विया तेहरान)
मॉस्को → बाकू (अजरबैजान) → दिल्ली
मॉस्को → काबुल (अफगानिस्तान) के रास्ते (यदि प्रतिकूल परिस्थितियाँ न हों)
सीधे (डायरेक्ट) मार्ग (यदि सभी एयरस्पेस क्लियर हों तो)
मॉस्को → ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) → दिल्ली
मॉस्को → अल्माटी (कज़ाख़स्तान) → दिल्ली
ये रूट विकल्प व्यावहारिक कारणों (उड़ान समय), कूटनीतिक अनुमति और कुछ अर्थों में सुरक्षित-हवाइ मार्गों के उपलब्ध-होने पर निर्भर करते हैं। रूस के विमानों के लिए कुछ क्षेत्रों में प्रतिबंध और सीमाएँ लग चुकी हैं, इसलिए यात्रा मार्गों का चुनाव रणनीतिक रूप से तय किया जाता है। सामान्यतः ऐसे उच्च-स्तरीय दौरे पर दोनों देशों की हवाई सुरक्षा एजेंसियाँ व्लाइटप्लान, एंड-टू-एंड सुरक्षा और एयरस्पेस क्लियरेंस पहले से सुनिश्चित कर लेती हैं।
संभावित अंतरराष्ट्रीय और घरेलू प्रतिक्रियाएँ — क्या उम्मीद करें?
पश्चिमी देशों और कुछ यूरोपीय राजधानियों में इस यात्रा को आलोचना मिल सकती है, खासकर उन देशों से जो ICC के दायरे में सक्रिय हैं या रूस पर सख्त प्रतिबंध लगा रहे हैं। फिर भी कई देशों ने यह भी कहा है कि कूटनीतिक संवाद बचाए रखना ज़रूरी है।
भारत-रूस आर्थिक व रक्षा सहयोग पर आगे बढ़ने की दिशा में दोनों पक्षों के बयान आने की संभावना है; नई डील या तकनीकी सहयोग संबंधी घोषणाएँ भी हो सकती हैं।
घरेलू स्तर पर भी राजनीतिक और नागरिक समूह ICC वारंट के सन्दर्भ में टिप्पणियाँ करेंगे; पर निर्णायक कानूनी बाध्यता न होने के कारण निर्णायक कार्रवाई की संभावना सीमित है।
क्या बदलने की उम्मीद है?
कानूनी रूप से भारत पर ICC के पुतिन-वारंट को लागू करने की बाध्यता नहीं है। व्यवहार में, भारत को इस दौरे के दौरान अपने राष्ट्रीय हितों, सुरक्षा व कूटनीतिक संतुलन को ध्यान में रखकर फ़ैसले लेने होंगे। दौरे से सामने आने वाले समझौतों और दोनों नेताओं के संवाद से क्षेत्रीय कूटनीति तथा रूस-भारत आर्थिक/सैन्य साझेदारी पर असर पड़ेगा — और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसका नाप-तौल देखा जाएगा।














