महाराष्ट्र में 2 दिसंबर को आयोजित होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों (246 नगरपालिकाएँ और 42 नगर पंचायतें) की आचार संहिता लागू होने के बाद राजनैतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। नतीजे 3 दिसंबर को आने हैं। ऐसे में रायगढ़ जिले में गठबंधन की दिशा लेकर चल रही द्वंद्वात्मक परिस्थितियों ने राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया है।
उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में आज रायगढ़ में हुई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की समीक्षा बैठक में यही मुद्दा गरमाया कि स्थानीय निकाय चुनावों में शिवसेना (एकनाथ शिंदे समूह) के साथ गठबंधन न किया जाए। बैठक में सांसद सुनील तटकरे सहित जिले के तमाम पदाधिकारी और स्थानीय नेता मौजूद थे। बैठक में अधिकांश पदाधिकारियों ने रायगढ़ में शिवसेना के साथ गठबंधन के विपक्ष में राय जाहिर की और सुझाव दिया कि भाजपा के साथ गठबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
बैठक के बाद अजित पवार ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए स्थानीय स्तर पर ही यह तय करने की छूट दे दी है कि किसके साथ गठबंधन किया जाए — यानी गठबंधन निर्णय अब ज़मीनी नेताओं के विवेक पर छोड़ा गया है। इस फैसले के बाद भविष्य में गठबंधन रेखाओं में असंतुलन या फूट की आशंका जताई जा रही है और सबकी निगाहें अब स्थानीय नेताओं के कदमों पर टिक गयी हैं।
पार्टी के भीतर शक्तिसंघर्ष भी स्पष्ट दिखा — शिवसेना के भरत गोगावले और राकांपा की सुनील तटकरे के बीच सबका ध्यान रहा। गोगावले ने तटकरे के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था, जिसमें फॉर्मूला यह था कि सीटों का बंटवारा विधायकों की संख्या के अनुपात में किया जाए। तटकरे ने इस फॉर्मूले का मज़ाक उड़ाकर खारिज किया और संकेत दिया कि अब वे ज़्यादा स्वतंत्र सक्रियता के साथ टिके हुए हैं। दोनों नेताओं के बीच पिछले दिनों से तीखी बयानबाज़ियाँ और आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिले हैं, जो स्थानीय चुनावों को और संवेदनशील बना रही हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि स्थानीय निकाय चुनावों में सीट-बंटवारे और स्थानीय गठबंधन निर्णायक साबित होंगे — खासकर उन स्थानों पर जहाँ पर दोनों ही नेता अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। अजित पवार के स्थानीय स्तर पर निर्णय देने के निर्देश से फिलहाल यह स्थिति बनी है कि जिले की राजनीति अगले कुछ दिनों तक जटिल और गतिशील बनी रहेगी।
आगे क्या होगा — यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्थानीय नेतृत्व किस तरह सीट-बंटवारे और गठबंधन के मसलों पर सहमति बनाता है। रायगढ़ में आगामी दिनों में होने वाली हलचल से राज्य के व्यापक राजनीतिक समीकरणों पर भी असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।














