Monday, October 27, 2025
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LIC-Adani विवाद: AAP के Sanjay Singh ने 33 हज़ार करोड़ के निवेश का लगा आरोप — कांग्रेस-वाम दल बोले, LIC ने फरियाद खारिज की

नई दिल्ली, आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह ने शनिवार को भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और अडानी समूह को लेकर गंभीर आरोप लगाए। सिंह ने सोशल मीडिया पोस्ट और एक वीडियो में दावा किया कि LIC ने पॉलिसी-धारकों की बचत से करीब ₹33,000 करोड़ का निवेश अडानी समूह के पक्ष में कराकर उसे लाभ पहुंचाया।


AAP का आरोप — “LIC अब ‘अडानी के साथ’”

संजय सिंह ने एक्स (Twitter) पर साझा किए गए वीडियो में कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपकी गाढ़ी कमाई का पैसा ₹33,000 करोड़ अपने मित्र अडानी को दे दिया है। LIC का नारा अब ‘ज़िंदगी के साथ और ज़िंदगी के बाद’ नहीं रहा, बल्कि ‘अडानी के साथ है, अडानी के साथ रहेंगे’ बन गया है।” इस पोस्ट के साथ उन्होंने मामले की उच्च स्तरीय जांच की माँग की।


कांग्रेस ने माँगा PAC (लोक लेखा समिति) जांच-ऑडिट

कांग्रेस ने अमेरिकी अख़बार The Washington Post की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि LIC के अडानी में बड़े निवेश की पूँजीगत योजना पारदर्शिता के प्रश्न उठाती है और इसे संसद की लोक लेखा समिति (PAC) से जांच कराया जाना चाहिए। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इसे 30 करोड़ पॉलिसीधारकों की बचत के दुरुपयोग का मामला करार दिया और केंद्र से जवाब मांगा।

प्रस्तावित दस्तावेज़ और ‘May 2025’ का जिक्र

रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया कि मई 2025 में भारतीय अधिकारियों द्वारा एक योजना/प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसके तहत LIC की बड़ी राशि अडानी समूह की विभिन्न इकाइयों में लगाई जाने की रूपरेखा शामिल थी — जिसका उद्देश्य निवेशकों का विश्वास बहाल करना और समूह के वित्तीय संकट में सहारा देना बताया गया।


LIC का खण्डन — “झूठे और निराधार आरोप”

LIC ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि “रिपोर्ट में लगाए गए दावे झूठे, निराधार और सच्चाई से बहुत दूर हैं” और निवेश-निर्णय बोर्ड-अनुमोदित नीतियों और विस्तृत ड्यू-डिलिजेंस के बाद लिए जाते हैं। LIC ने स्पष्ट किया कि वित्त मंत्रालय या किसी बाहरी निकाय का ऐसे निर्णयों पर कोई प्रभाव नहीं होता और ऐसा कोई दस्तावेज़/योजना अस्तित्व में नहीं है जैसा रिपोर्ट में कहा गया।


अडानी समूह या सरकार की आधिकारिक टिप्पणियाँ

प्रकाशित रिपोर्टों के प्रकाशित होने के बाद अडानी ग्रुप और केंद्र सरकार की तरफ से औपचारिक प्रतिक्रिया या विस्तृत स्पष्टीकरण नहीं मिला; वहीं कुछ रिपोर्टों में अडानी-संबंधी दावों का समूह ने खंडन किया है। मामले ने राजनीति और वित्तीय पारदर्शिता पर राष्ट्रीय बहस को फिर से तेज कर दिया है।

यदि वाकई LIC के माध्यम से बड़ी मात्र में सार्वजनिक बीमा निधि किसी निजी समूह के स्थिरीकरण में निर्देशित की गयी — जैसा आरोप लग रहा है — तो यह सार्वजनिक विश्वास, कॉर्पोरेट-गवर्नेंस और विनियामक जवाबदेही के गंभीर प्रश्न उठाता है। विपक्ष का PAC द्वारा जांच का दबाव और LIC का खंडन — दोनों मिलकर इस मुद्दे को संसद और मीडिया के प्रमुख एजेंडे पर रख देंगे।

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
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