नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार, 1 सितंबर को उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर में स्थित त्रिवेणी इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड की चीनी मिल पर एनजीटी द्वारा लगाया गया ₹18 करोड़ का पर्यावरण जुर्माना रद्द कर दिया। शुक्रवार की बेंच — न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां — ने अपील स्वीकार करते हुए 15 फरवरी 2022 तथा 16 सितंबर 2022 के एनजीटी के आदेशों को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने अपने आदेश में सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा कि एनजीटी ने वैधानिक प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए आदेश पारित किए, और “न्याय करने की कोशिश में उल्टा अन्याय किया गया” — यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है। बेंच ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक चूक पाई जाने पर पक्षों को वैधानिक प्रक्रिया का पालन कराते हुए पुनः सुनवाई के लिए मान्य न्यायिक मंच भेजा जाना चाहिए, न कि सीधे दंडात्मक आदेश लागू किए जाएँ।
मामला क्या था? — आरोप और जांच
मामला एक स्थानीय शिकायत (दायरकर्ता: चंद्रशेखर) से उत्पन्न हुआ था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि खतौली (मुज़फ़्फरनगर) स्थित त्रिवेणी की चीनी मिल बिना शोधन के औद्योगिक अपशिष्ट नालों में बहा रही है। शिकायत में यह भी कहा गया था कि 1.5 किलोमीटर के दायरे में 50 मीटर तक भूजल प्रदूषित हुआ है। एनजीटी ने इस पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), यूपीपीसीबी और जिला मजिस्ट्रेट की प्रतिनिधियों की संयुक्त समिति का गठन कराया और समिति की रिपोर्ट के आधार पर दंडात्मक आदेश दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रियागत कमियों की ओर इशारा किया
सुप्रीम कोर्ट ने विश्लेषण करते हुए पाया कि एनजीटी ने पक्ष को पर्याप्त मौका दिये बगैर और आवश्यक वैधानिक कदम उठाए बिना ऐसे आदेश दे दिए, जिसका परिणामस्वरूप समूचा निर्णय प्रक्रिया दूषित हो गई। कोर्ट ने कहा कि किसी दंड या मुआवज़े के आदेश का निर्गमन करते समय न केवल प्रदूषण के तथ्य सिद्ध होने चाहिए, बल्कि लागू की गई प्रक्रिया, पक्षों को सुनना और वैधानिक धाराओं का पालन भी अनिवार्य है। ऐसे प्रकृति के उल्लंघन पर फ़ैसला बरकरार रखना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
पर्यावरणीय और नीतिगत निहितार्थ
यह फैसला पर्यावरण न्याय और नियामक प्राधिकरणों के दायरे पर एक अहम संकेत देता है — न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एनजीटी को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय भी वैधानिक दायरे और प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करना होगा। वहीं, पर्यावरण विविध मामलों में त्वरित कदम की आवश्यकता होना और प्रभावित जनता व भू-जल संरक्षण की संवेदनशीलता बरकरार रहती है; इसलिए ऐसे मामलों में तथ्य-परख और प्रक्रिया दोनों की समुचित जांच आवश्यक है।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की प्रक्रियागत त्रुटियों का हवाला देते हुए न केवल यह आदेश रद्द किए, बल्कि यह भी संकेत दिया कि यदि आवश्यकता हुई तो एनजीटी को वैधानिक प्रक्रिया का पालन कराते हुए पुनः मामले की सुनवाई के लिए कहा जा सकता है — न कि उसी पूर्व-निर्णय को बनाए रखना। यह फैसला न केवल त्रिवेणी मामले पर लागू होगा बल्कि भविष्य में पर्यावरणीय मुकदमों में नियामक कार्रवाई के तरीकों पर भी प्रभाव डालेगा।