नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों (street dogs) को लेकर अहम आदेश जारी किया है। अदालत ने निर्देश दिया है कि अगले आठ हफ्ते के भीतर आवारा कुत्तों का स्थानांतरण शेल्टर होम्स में किया जाए और एक बार शेल्टर में रखे गए किसी भी कुत्ते को सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा। कोर्ट ने साथ ही 5,000 कुत्तों के लिये शेल्टर व्यवस्था बनाने का आदेश दिया और इसे सार्वजनिक सुरक्षा से जोड़ा है।
आदेश का सार
दिल्ली-NCR के लिये शीघ्र शेल्टर-होम्स स्थापित कर कुल 5,000 कुत्तों की व्यवस्था करना।
शेल्टर में помещाए गए जानवरों को सड़क पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा।
आदेश का औचित्य: कुत्तों की बढ़ती संख्या और काटने-घटना के मामलों को देखते हुए सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
राजनीतिक प्रतिक्रिया — मेनका और राहुल ने फैसले की निंदा की
मेनका गांधी (BJP) ने फैसले को अव्यावहारिक और क्रूर बताया। उनका कहना है कि केवल उठाकर शेल्टर में डाल देने से समस्या हल नहीं होगी। उन्होंने दलील दी कि शेल्टर-इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए विशाल भूमि, भारी वित्तीय संसाधन और बहुत बड़ा स्टाफ चाहिए — और यह तुरंत उपलब्ध नहीं है। मेनका ने ABC (Animal Birth Control), टीकाकरण और सामुदायिक निगरानी को ही व्यवहारिक समाधान बताया और फैसले की समीक्षा/अपील की बात कही।
राहुल गांधी (कांग्रेस) ने सोशल मीडिया पर फैसला निंदनीय करार दिया और कहा कि आवारा कुत्तों को हटाने के बजाय शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल से मानवीय ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने जन-सुरक्षा और पशु-कल्याण दोनों को साथ चलाने की अपील की।
अदालत ने क्यों यह कदम उठाया — सुरक्षा प्राथमिकता
न्यायालय ने सार्वजनिक सुरक्षा — विशेषकर गर्भवती महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग — को प्राथमिकता देते हुए यह आदेश दिया। अदालत का तर्क है कि यदि सड़क पर कुत्तों की संख्या और काटने के मामले बढ़ रहे हैं तो राज्य-प्रशासन को तत्काल कदम उठाने चाहिए।
प्रशासनिक और लॉजिस्टिक चुनौतियाँ
विशेषज्ञ और पशु-कल्याण संस्थाएँ बताती हैं कि आदेश लागू करने के लिये कई व्यावहारिक बाधाएँ हैं:
उपयुक्त भूमि उपलब्ध कराना;
शेल्टर-हब्स की त्वरित निर्माण लागत और संचालन व्यय;
प्रशिक्षित पशु-चिकित्सक, केयर-स्टाफ और संसाधन;
बड़े पैमाने पर कैप्चर, नसबंदी और वैक्सीनिंग का व्यवस्थित कार्यक्रम;
पशु कल्याण कानूनों, लोक स्वास्थ्य और नगर निकायों के बीच समन्वय।
कई पशु-वेलफेयर विशेषज्ञों का मानना है कि ABC-टिकाकरण-सामुदायिक मॉनिटरिंग मॉडल दीर्घकालिक और मानवीय समाधान है, जबकि तत्काल शेल्टर-रणनीति को सफल बनाने के लिये सघन योजना, पूँजी और समन्वय आवश्यक है।
क्या कहती हैं संस्था-स्तरीय राय और वैकल्पिक प्रस्ताव
ABC (Animal Birth Control): नसबंदी-केंद्रों का नेटवर्क बढ़ाया जाए; इससे जन्म-दर घटेगी और समय के साथ आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित होगी।
टीकाकरण: रेबीज व अन्य बीमारियों के खिलाफ तीव्र टीकाकरण अभियान जरूरी।
समुदाय-आधारित समाधान: सावधानी, जागरूकता और स्थानीय निगरानी; फीडिंग-जोन को नियंत्रित करना।
शेल्टर मॉडल: केवल कवर के रूप में, गंभीर या असामाजिक व्यवहार वाले जानवरों के लिये सीमित, वैज्ञानिक-प्रबंधित शेल्टर।
कानूनी और नैतिक आयाम
यहां अदालत के आदेश और पशु-कुल्याण के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा। कुछ सवाल उठते हैं:
क्या कोर्ट-निर्देशों का पालन स्थानीय निकाय समय पर कर पाएँगे?
शेल्टर होम्स में रखे गए जानवरों की भलाई और पुनर्वास की गारंटी कैसे होगी?
आदेश के खिलाफ समीक्षा/अपील की प्रक्रिया किस तरह चलेगी?
आगे की राह
अगले कुछ सप्ताह निर्णायक होंगे: नगर निगमों, राज्य सरकारों और पशु-कल्याण संगठनों द्वारा कार्रवाई योजना, वित्तीय संसाधन और ज़मीनी समन्वय स्पष्ट होगा। संभवत: कोर्ट के निर्देशों के पालन के साथ-साथ ABC-आधारित उपायों को भी समेकित किया जाएगा ताकि जन-सुरक्षा और पशु-कल्याण दोनों सुनिश्चित हो सकें।