तिरुवनंतपुरम: हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (HMIS) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, केरल में बीते नौ वर्षों के दौरान गर्भपात (अबॉर्शन) के मामलों में 76 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि न केवल स्वास्थ्य जागरूकता में इजाफे का संकेत है, बल्कि महिलाओं द्वारा अपनी रिप्रोडक्टिव हेल्थ और निजता को लेकर बढ़ती सजगता का भी प्रमाण है।
निजी अस्पतालों में महिलाओं की बढ़ती निर्भरता
रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में केरल में लगभग 30,000 अबॉर्शन के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 21,282 केस निजी अस्पतालों में और केवल 8,755 केस सरकारी अस्पतालों में हुए। इसी अवधि में (2015-2025), कुल 1,97,782 अबॉर्शन दर्ज किए गए जिनमें से 1,30,778 निजी और 67,004 सरकारी अस्पतालों में हुए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रुझान महिलाओं द्वारा गोपनीयता और बेहतर सेवाओं की तलाश का परिणाम है। सरकारी अस्पतालों में प्रक्रियात्मक जटिलताएं, जैसे विवाह प्रमाणपत्र की अनिवार्यता और सामाजिक दबाव, महिलाओं को हतोत्साहित करते हैं।
समाजिक सोच और मेडिकल व्यवहार पर सवाल
अबॉर्शन को अब भी भारतीय समाज में नैतिक दोष या कलंक की नजर से देखा जाता है। कई बार डॉक्टर गर्भपात की परिस्थिति जाने बिना ही सेवाएं देने से मना कर देते हैं। यह रवैया महिलाओं के शारीरिक अधिकारों और स्वतंत्र निर्णय के अधिकार का उल्लंघन है।
जरूरी है दृष्टिकोण में बदलाव
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सभी अबॉर्शन “नकारात्मक” नहीं होते। कई बार यह प्रक्रिया महिलाओं के जीवन और स्वास्थ्य को बचाने के लिए जरूरी होती है। वहीं दूसरी ओर, जबरदस्ती कराए गए अबॉर्शन भी चिंता का विषय हैं, जिनसे निपटने के लिए संवेदनशील, प्रशिक्षित और जागरूक चिकित्सकीय व्यवहार की आवश्यकता है।
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को बनना होगा भरोसेमंद
रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि महिलाओं का निजी अस्पतालों की ओर रुझान, सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली की सीमाओं को उजागर करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकारी अस्पतालों में गोपनीयता, सहज प्रक्रियाएं और संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी जाए, तो अधिक महिलाएं वहां की सेवाओं का लाभ उठा सकेंगी।
महिलाएं अब जागरूक और निर्णायक भूमिका में
इस आंकड़ों का सकारात्मक पक्ष यह है कि आज की महिलाएं अब अपने शरीर और स्वास्थ्य को लेकर अधिक जागरूक, मुखर और आत्मनिर्भर हो रही हैं। वे न केवल निर्णय लेने में सक्षम हैं बल्कि अपने अधिकारों को लेकर भी सचेत हैं।
केरल की यह रिपोर्ट पूरे देश के लिए एक सिग्नल है कि महिला स्वास्थ्य नीति को गंभीरता, संवेदनशीलता और समावेशिता के साथ फिर से देखा जाए। अबॉर्शन पर सामाजिक मानसिकता और चिकित्सा पद्धति — दोनों में सुधार की आवश्यकता है ताकि हर महिला सुरक्षित, सहज और गरिमा के साथ अपने निर्णय को ले सके।