
एक नजर में मामला
मथुरा की धार्मिक और ऐतिहासिक जमीन एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़े विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज दोपहर दो बजे महत्वपूर्ण सुनवाई होनी है। यह सुनवाई न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ के समक्ष होगी।
18 याचिकाएं, एक बड़ा दावा
हिंदू पक्ष की ओर से कुल 18 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इन याचिकाओं में से एक प्रमुख याचिका में शाही ईदगाह मस्जिद को “विवादित ढांचा” घोषित करने की मांग की गई है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद मुगल शासक औरंगजेब द्वारा श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर उसके स्थान पर बनाई गई थी।
मुस्लिम पक्ष की आपत्ति
मुस्लिम पक्ष ने इन दावों का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यह मस्जिद कानूनी रूप से स्थापित है और दशकों से धार्मिक स्थल के रूप में प्रयोग में है। मुस्लिम पक्ष ने हालिया सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं का हवाला देकर हाईकोर्ट की कार्यवाही पर “स्टे” की मांग की थी, जिसे हिंदू पक्ष ने सख्ती से खारिज किया।
राधा रानी को पक्षकार बनाने की मांग
हिंदू पक्ष ने अदालत से श्रीमती राधा रानी को भी इस मुकदमे में पक्षकार बनाने की मांग की है। उनका तर्क है कि भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा रानी की पूजा होती है और उनकी अनुपस्थिति में धार्मिक अधिकार अधूरे हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि धार्मिक परंपरा और श्रद्धा के अनुसार राधा रानी इस मुकदमे में एक महत्वपूर्ण पक्षकार हैं।
पृष्ठभूमि: औरंगजेब और ऐतिहासिक संदर्भ
यह विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल (17वीं सदी) से जुड़ा है। हिंदू पक्ष का दावा है कि जिस स्थल पर वर्तमान में शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और वहीं एक प्राचीन मंदिर मौजूद था। बताया जाता है कि औरंगजेब ने उस मंदिर को तुड़वाकर वहां मस्जिद का निर्माण कराया।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
हाल ही में, 28 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की एक याचिका पर सुनवाई की थी। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए हिंदू पक्ष को अपनी याचिका में संशोधन की अनुमति दी थी। साथ ही अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को इस मामले में पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी।
पीठ ने स्पष्ट किया था कि यदि याचिकाकर्ता यह दावा करते हैं कि विवादित स्थल ASI द्वारा संरक्षित स्मारक है, तो “पूजा स्थल संरक्षण अधिनियम, 1991” इस स्थल पर लागू नहीं होगा।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?
यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 के बाद से सभी धार्मिक स्थलों की स्थिति को उसी रूप में बरकरार रखने का आदेश देता है, जिसमें वे स्वतंत्रता के समय मौजूद थे। लेकिन यदि यह साबित हो जाए कि किसी स्थल को मंदिर तोड़कर बनाया गया है, और वह ASI के संरक्षित स्मारक की श्रेणी में आता है, तो यह अधिनियम लागू नहीं होगा।
आज की सुनवाई क्यों है महत्वपूर्ण?
आज की सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि:
- अदालत यह तय कर सकती है कि 18 याचिकाओं को कैसे आगे बढ़ाया जाए।
- शाही ईदगाह को “विवादित ढांचा” घोषित करने की मांग पर अदालत की प्रारंभिक राय सामने आ सकती है।
- राधा रानी को पक्षकार बनाने की याचिका पर भी न्यायालय का रुख साफ हो सकता है।
- यदि अदालत एएसआई की रिपोर्ट या सर्वेक्षण की अनुमति देती है, तो यह पूरे विवाद की दिशा तय कर सकता है।
निष्कर्ष: क्या इतिहास फिर से लिखा जाएगा?
मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद कानूनी और धार्मिक दोनों ही दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है। अयोध्या के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा ऐसा विवाद है, जिसमें मंदिर-मस्जिद को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। अदालत के निर्णय इस ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विवाद के भविष्य की दिशा तय करेंगे।