
नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना की विंग कमांडर और ऑपरेशन सिंदूर जैसी अहम सैन्य कार्रवाई का हिस्सा रहीं महिला अधिकारी निकिता पांडे को सेवा से मुक्त किए जाने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय वायुसेना से इस फैसले पर जवाब तलब करते हुए स्पष्ट किया कि “सैन्य सेवाओं में अनिश्चितता किसी भी अधिकारी के लिए उचित नहीं हो सकती।”
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने विंग कमांडर निकिता पांडे की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिका में उन्होंने स्थायी कमीशन (Permanent Commission) से वंचित किए जाने को भेदभावपूर्ण करार दिया है।
“देश की संपत्ति हैं ये अधिकारी”: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने भारतीय वायुसेना को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में से एक बताया और कहा,
“हमारी वायुसेना के अधिकारी बेमिसाल हैं। उन्होंने जिस स्तर का समन्वय और समर्पण दिखाया है, वह गर्व की बात है। वे हमारे राष्ट्र की सुरक्षा की रीढ़ हैं, जिनकी वजह से हम चैन की नींद सो पाते हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों की सेवा शुरुआत से ही कठिन होती है और उन्हें उचित प्रोत्साहन दिए बिना सेवा समाप्त करना उचित नहीं हो सकता।
ASG की दलील और कोर्ट का तात्कालिक फैसला
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता चयन बोर्ड द्वारा अयोग्य पाई गई थीं और उन्होंने बिना औपचारिक प्रतिवेदन दिए सीधे सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने यह भी सूचित किया कि एक अन्य चयन बोर्ड उनके मामले की समीक्षा करेगा।
इसके बाद कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई तक विंग कमांडर निकिता पांडे को सेवा से मुक्त न किया जाए। मामले की अगली सुनवाई 6 अगस्त 2025 को होगी।
ऑपरेशन बालाकोट और सिंदूर की योद्धा
गौरतलब है कि विंग कमांडर निकिता पांडे भारतीय वायुसेना की उन चुनिंदा महिला अधिकारियों में शामिल हैं, जिन्होंने ऑपरेशन बालाकोट में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हाल ही में उन्हें पाकिस्तान की ओर से हो रही सीजफायर उल्लंघनों के जवाब में चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में तैनात किया गया था। वह इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) की एक विशेषज्ञ फाइटर कंट्रोलर हैं।
यह मामला न केवल महिलाओं की भूमिका को लेकर रक्षा सेवाओं में समानता की बहस को हवा देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उच्चतम न्यायालय सैन्य पेशेवरों की सेवा सुरक्षा को लेकर बेहद गंभीर है।