
नई दिल्ली/जम्मू-कश्मीर — जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई, के बाद भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक और सख्त कदम उठाते हुए दशकों पुरानी सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्णय लिया है। इस निर्णय की औपचारिक सूचना पाकिस्तान को भेज दी गई है।
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल उपयोग को नियंत्रित करती है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान द्वारा लगातार प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद के चलते इस संधि के मूल उद्देश्यों और शर्तों का खुला उल्लंघन हो रहा है।
भारत ने पाकिस्तान को भेजा औपचारिक पत्र
भारत के जलशक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी ने पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तज़ा को पत्र लिखकर इस फैसले की विस्तृत जानकारी दी। पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि:
“जम्मू-कश्मीर को निशाना बनाकर पाकिस्तान द्वारा लगातार की जा रही आतंकवादी गतिविधियाँ भारत की सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं। इस स्थिति ने सिंधु जल संधि के अंतर्गत भारत के वैधानिक अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने की क्षमता को बाधित किया है।”
हमले के बाद लिया गया फैसला
मंगलवार को पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत हुई थी, जिनमें अधिकांश पर्यटक थे। यह हमला न सिर्फ मानवता पर हमला था, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती भी। इसी पृष्ठभूमि में भारत ने यह कड़ा निर्णय लेते हुए स्पष्ट संदेश दिया है कि अब पाकिस्तान के साथ पानी जैसी जीवनरेखा को साझा करना भी बिना शर्तों के संभव नहीं है।
पृष्ठभूमि: सिंधु जल संधि क्या है?
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों के बंटवारे को लेकर बनी एक ऐतिहासिक संधि है। इसमें भारत को पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) पर पूर्ण अधिकार दिया गया है, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर सीमित उपयोग की अनुमति दी गई थी। दशकों से भारत ने इस संधि का ईमानदारी से पालन किया है, जबकि पाकिस्तान इसकी आड़ में आतंकी गतिविधियों को प्रायोजित करता रहा है।

भारत का सख्त संदेश
भारत का यह निर्णय दर्शाता है कि अब पाकिस्तान को सिर्फ कूटनीतिक या सैन्य नहीं, बल्कि जल कूटनीति के स्तर पर भी जवाब मिलेगा। भारत ने साफ कर दिया है कि आतंक और समझौते एक साथ नहीं चल सकते।
यह निर्णय न सिर्फ एक संधि का स्थगन है, बल्कि एक दृढ़ राष्ट्र का घोषणापत्र है — अब सहन नहीं, समाधान होगा।