
नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा कि संघ व्यक्तिवाद की नहीं, बल्कि सिद्धांतों और विचारों की साधना करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ में व्यक्ति-पूजा का कोई स्थान नहीं है, बल्कि राष्ट्र और समाज की सेवा करने वाले महापुरुषों के विचारों का अनुसरण किया जाता है।
उन्होंने कहा कि पौराणिक युग में भगवान हनुमान और आधुनिक युग में छत्रपति शिवाजी महाराज संघ के आदर्श हैं। हनुमान जी ने अपने संपूर्ण जीवन में कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण और मर्यादा का पालन किया, वहीं छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में न केवल एक शक्तिशाली हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की, बल्कि न्याय, सुशासन और लोककल्याण को भी सर्वोच्च प्राथमिकता दी। यही गुण उन्हें एक आदर्श नेतृत्वकर्ता बनाते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज: सिर्फ योद्धा नहीं, कुशल रणनीतिकार भी
मोहन भागवत ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज सिर्फ एक वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक और राष्ट्रनिर्माता भी थे। उनका शासन कुशल प्रशासन, न्यायप्रिय नीतियों और समाज के कल्याण पर आधारित था। उन्होंने अपनी नीतियों से समाज को संगठित किया और एक ऐसा स्वराज्य स्थापित किया जो आत्मनिर्भर और सशक्त था।
भगवान हनुमान और शिवाजी महाराज में समानता
संघ प्रमुख ने छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना भगवान हनुमान से करते हुए कहा कि जिस प्रकार हनुमान जी ने बिना किसी अहंकार के अपने कर्तव्यों को निभाया और संपूर्ण समर्पण से श्रीराम की सेवा की, ठीक उसी प्रकार शिवाजी महाराज ने भी अपने राष्ट्र और प्रजा की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनका जीवन साहस, निष्ठा और परिश्रम का प्रतीक था।
युवाओं के लिए प्रेरणा
मोहन भागवत ने देश के युवाओं से आह्वान किया कि वे छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र और समाज की सेवा में समर्पित रहें। उन्होंने कहा कि आज के समय में शिवाजी महाराज के आदर्शों को अपनाना आवश्यक है ताकि समाज को संगठित, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
संघ के लिए शिवाजी महाराज सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद के प्रतीक
संघ प्रमुख ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से भारतीय इतिहास के महापुरुषों को राष्ट्रवाद और प्रेरणा के स्रोत के रूप में देखता आया है। संघ की विचारधारा के अनुसार, छत्रपति शिवाजी महाराज केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज एक योद्धा नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक हैं। उनके जीवन से समाज को अनुशासन, नेतृत्व और कर्तव्यपरायणता की सीख लेनी चाहिए।
मोहन भागवत के इस बयान को राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शिवाजी महाराज के विचारों को संघ की विचारधारा से जोड़कर देखने से यह स्पष्ट होता है कि संघ भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रवाद को सशक्त करने की दिशा में लगातार प्रयासरत है।