
क्या नाड़ा खोलने की क्रिया अब कानूनी बहस का विषय बन गई है? इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर 24 मार्च को सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि स्तन पकड़ना और पायजामे का नाड़ा खोलना बलात्कार नहीं, बल्कि मात्र यौन उत्पीड़न है। इस फैसले को लेकर कानूनी और सामाजिक हलकों में बवाल मचा हुआ है।
हाईकोर्ट के ‘नवीनतम’ व्याख्यान से मचा बवाल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी लड़की के स्तन पकड़ता है, उसका पजामा उतारने की कोशिश करता है और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करता है, तो इसे बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। अदालत ने आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) को हटाते हुए इस कृत्य को केवल यौन उत्पीड़न माना और आरोपियों पर हल्की धाराएं लगाईं।
अब सवाल यह उठता है – क्या अपराध को अपराध मानने के लिए उसे ‘पूरा’ होना जरूरी है? क्या पीड़िता को पूरी तरह पीड़ित होने तक इंतजार करना चाहिए?
‘कानूनी तकनीकी’ के जाल में फंसा न्याय?
इस मामले में मुख्य आरोपी पवन और आकाश पर आरोप था कि उन्होंने 11 साल की बच्ची के साथ जबरदस्ती की, उसके कपड़े उतारने का प्रयास किया और उसे खींचकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश की। लेकिन जब राहगीरों ने दखल दिया, तो आरोपी घटना स्थल से भाग निकले।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह घटना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आती, बल्कि यौन उत्पीड़न का मामला बनता है। अदालत का कहना था कि आरोपी अगर अपने इरादे में पूरी तरह सफल हो जाते, तभी इसे बलात्कार का प्रयास माना जाता।
सुप्रीम कोर्ट में होगी अंतिम लड़ाई
इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के वकील अंजलि पटेल ने याचिका दायर की है, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करने और न्यायपालिका में इस तरह की व्याख्याओं को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है।
क्या यह फैसला अपराधियों के लिए ‘लाइसेंस टू हरासमेंट’ है?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यौन अपराधियों के लिए एक खतरनाक नजीर बन सकता है। अगर नाड़ा खोलना, स्तन पकड़ना, और जबरन खींचने की कोशिश करना केवल ‘यौन उत्पीड़न’ है, तो आगे चलकर अपराधियों के लिए ‘पूर्ण अपराध’ करने से पहले रुकने और बच निकलने का नया रास्ता खुल सकता है।
24 मार्च – न्याय की परीक्षा
अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस ‘न्यायिक तकनीकी तर्क’ को स्वीकार करता है या इस पर सख्त रुख अपनाता है। 24 मार्च को होने वाली सुनवाई से यह स्पष्ट होगा कि क्या अपराधियों को ‘अपराध करने का पूरा मौका देने’ वाली इस व्याख्या को चुनौती मिलेगी या नहीं।