Tuesday, July 1, 2025
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मानसिक रूप से कमजोर युवक की कस्टडी अमेरिकी मां को, सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिका ले जाने की दी अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मानसिक रूप से कमजोर एक 22 वर्षीय युवक की देखभाल की जिम्मेदारी उसकी अमेरिकी नागरिक मां, शर्मिला वेलामुर, को सौंप दी और उसे अमेरिका ले जाने की अनुमति दे दी। कोर्ट ने माना कि युवक स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में अक्षम है, इसलिए मां की देखरेख में रहना ही उसके हित में होगा

युवक की मानसिक स्थिति 8-10 साल के बच्चे जैसी

🔹 निमहांस, बेंगलुरु में हुई चिकित्सीय जांच में पता चला कि युवक की मानसिक स्थिति मात्र 8 से 10 साल के बच्चे के समान है।
🔹 वह हल्के बौद्धिक विकास संबंधी विकार (Intellectual Disability) और सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित है, जिससे उसकी दिव्यांगता 80% के स्तर तक पहुंच चुकी है।
🔹 कोर्ट ने कहा कि वह अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेने में सक्षम नहीं है, इसलिए उसे अपनी मां की देखभाल में रहना चाहिए।

पिता को बाधा न डालने का निर्देश

⚖️ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने पिता को निर्देश दिया कि वे बेटे को अमेरिका जाने से न रोकें।
⚖️ कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि युवक को अपनी मां के साथ रहना चाहिए, क्योंकि पिता की कस्टडी में वह उचित देखभाल नहीं पा रहा था।

क्या था पूरा मामला?

👉 शर्मिला वेलामुर और उनके पति का तलाक हो गया था।
👉 जब अमेरिका के इदाहो में बेटे की कस्टडी को लेकर कानूनी कार्यवाही चल रही थी, तभी पिता बेटे को अमेरिका से चेन्नई ले आए।
👉 शर्मिला को बेटे का कोई पता नहीं चला, जिसके बाद उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

📌 मद्रास हाईकोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि बेटे को अवैध रूप से बंधक नहीं बनाया गया था।
📌 हाईकोर्ट ने युवक से बातचीत कर यह निष्कर्ष निकाला कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहता है।
📌 हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया और निमहांस की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कहा कि युवक निर्णय लेने में सक्षम ही नहीं है।

15 दिन के भीतर अमेरिका लौटने का आदेश

🚨 सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि युवक को 15 दिनों के भीतर उसकी मां के साथ अमेरिका भेजा जाए।
🚨 साथ ही, पिता को स्पष्ट निर्देश दिया कि वे बेटे और उसकी मां की वापसी में किसी भी तरह की बाधा न डालें।

क्या यह फैसला मानसिक रूप से कमजोर लोगों के अधिकारों की रक्षा में मील का पत्थर साबित होगा?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की देखभाल उनके सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखकर होनी चाहिए।

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
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