Worship Act: वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 पर सवाल उठाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया और मुगलों द्वारा किए गए अवैध निर्माणों को वैध बनाने के दावे पर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर एक्ट के सेक्शन 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की है।
धार्मिक पहचान के लिए सर्वे जरूरी
उपाध्याय ने कहा, “किसी इमारत की संरचना देखकर यह तय नहीं किया जा सकता कि वह मंदिर है या मस्जिद। इसके लिए सर्वे आवश्यक है।” उन्होंने दावा किया कि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार मुगलों ने कई धार्मिक स्थलों के मूल चरित्र को बदल दिया है।
‘यह प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट है, प्लेसेस ऑफ प्रेयर नहीं’
उपाध्याय ने कहा कि यह एक्ट विवादित स्थलों की संरचना के साथ छेड़छाड़ रोकता है, लेकिन इससे उनकी ऐतिहासिक धार्मिक पहचान को दबाया नहीं जा सकता। “हम विवादित स्थलों का सर्वे चाहते हैं ताकि उनकी असली पहचान उजागर हो सके। यह सिर्फ हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है बल्कि ऐतिहासिक स्थलों को उनकी पहचान लौटाने का मुद्दा है,” उन्होंने कहा।
तिलक-टोपी से धर्म नहीं, पहचान जरूरी
उपाध्याय ने उदाहरण देते हुए कहा, “अगर मैं तिलक लगाऊं तो मुझे हिंदू समझा जाएगा, टोपी पहन लूं तो मुस्लिम। लेकिन मेरी असली पहचान जांच से ही पता चलेगी। इसी तरह, धार्मिक स्थलों की पहचान का निर्धारण भी सर्वे और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर होना चाहिए।”
वर्शिप एक्ट की संवैधानिकता पर सवाल
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 की स्थिति में जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसे उसी रूप में रखा जाएगा। इस कानून के विरोध में उपाध्याय और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समुदायों को उनके ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों पर दावा करने से रोकता है।
कोर्ट की सुनवाई पर रोक
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की बेंच ने गुरुवार को किसी भी नए सर्वे को लेकर याचिका दाखिल करने पर रोक लगा दी है। हालांकि, पहले से दायर याचिकाएं रजिस्टर की जाएंगी।
अन्य याचिकाकर्ता भी साथ
अश्विनी उपाध्याय के साथ काशी रॉयल फैमिली की महाराजा कुमारी कृष्णा प्रिया, बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय, और धार्मिक हस्तियां जैसे स्वामी जीतेंद्र सरस्वती, देवकीनंदन ठाकुर भी इस एक्ट को चुनौती दे रहे हैं।
उपाध्याय ने यह भी कहा कि यह कानून भारतीय संविधान के खिलाफ है और ऐतिहासिक अन्याय को सही ठहराने की कोशिश करता है।
VIKAS TRIPATHI
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