
वाराणसी की पावन धरती पर 12 मार्च को एक ऐतिहासिक घटना घटी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फ्लीट जैसे ही कबीरचौरा पहुंची, एक सांड ने लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का पूरा परिचय देते हुए बीच सड़क पर प्रवेश कर लिया। चूंकि यह मामला आम जनता की सड़क पर चलने भर का नहीं, बल्कि वीआईपी मूवमेंट के बीच आने का था, इसलिए इसे अक्षम्य अपराध माना गया। प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से दोषियों की पहचान की—भले ही सांड को अभी तक कोई नोटिस न भेजा गया हो, लेकिन दो बेलदारों को निलंबित कर दिया गया और 14 आउटसोर्स कर्मचारियों को सीधी सेवा मुक्त कर दिया गया।
नगर आयुक्त ने भी स्पष्ट कर दिया कि अब वाराणसी की सड़कों पर वीआईपी से बड़ा कोई नहीं हो सकता, न गाड़ी, न इंसान, और न ही पशु। भविष्य में अगर किसी आवारा जानवर ने इतनी हिमाकत की, तो उसे भी सरकारी नियमों की पूरी ताकत से निपटाया जाएगा। उधर, वॉरियर्स सिक्योरिटी एंड सर्विसेज नामक कंपनी को अंतिम चेतावनी दी गई है कि अगर अगली बार किसी और सांड ने शासन को चुनौती दी, तो कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा।
अब सवाल उठता है कि आखिर ये सांड था कौन? क्या यह विरोधी दलों का एजेंट था, या यह नगर निगम की नाकामी का प्रत्यक्ष प्रमाण था? क्या यह एक सामान्य घटना थी या “सांड साजिश”? इस विषय पर प्रशासन में गहरी मंथन बैठकें चल रही हैं। उधर, सांड ने इस पूरे घटनाक्रम पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है, और न ही वह किसी सरकारी योजना का लाभार्थी साबित हुआ है। फिर भी, नगर निगम ने उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई के संकेत दे दिए हैं—संभव है कि अब वाराणसी के सांडों को भी वीआईपी प्रोटोकॉल की ट्रेनिंग दी जाए।
इस बीच, विपक्ष ने इस घटना को हाथों-हाथ लिया है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जब सीएम साहब के काफिले में ही सांड आ जाएं, तो आम किसानों की फसलें कैसे बचेंगी? वहीं, बीजेपी समर्थकों का कहना है कि यह सांड भी “डबल इंजन सरकार” की प्रगति देखने आया था, लेकिन नियमों का उल्लंघन कर बैठा।
लेकिन यह मामला सिर्फ एक सांड के सड़क पर आने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रशासन की प्राथमिकताओं पर भी सवाल खड़ा करता है। आए दिन सड़कों पर गड्ढों, लापरवाही से दौड़ते वाहन, ट्रैफिक नियमों की अनदेखी और छुट्टा पशुओं के कारण आम आदमी की जान चली जाती है। कितने ही मासूम बच्चे, बुजुर्ग और दुपहिया वाहन चालक सड़क दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं, लेकिन तब किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। न कोई अधिकारी निलंबित होता है, न किसी सिक्योरिटी एजेंसी को चेतावनी दी जाती है। लेकिन जैसे ही मामला वीआईपी से जुड़ता है, प्रशासन की तत्परता देखने लायक होती है—तत्काल जांच कमेटी, कड़ी कार्रवाई और भविष्य के लिए सख्त निर्देश।
फिलहाल, प्रशासन अब यह सुनिश्चित करने में जुट गया है कि भविष्य में कोई भी छुट्टा पशु वीआईपी रूट का इस्तेमाल करने की भूल न करे। सूत्रों के मुताबिक, जल्द ही नगर निगम एक नया विभाग खोल सकता है—“वीआईपी पशु नियंत्रण प्रकोष्ठ”—जिसका मुख्य कार्य सांड, गाय, कुत्ते और बंदरों को वीआईपी प्रोटोकॉल का पाठ पढ़ाना होगा।
इसके अलावा, सरकारी सूत्रों से खबर मिली है कि भविष्य में छुट्टा पशुओं के लिए “एनिमल पास” जारी करने की योजना बन रही है, जिसमें हर जानवर को अपनी लोकेशन और गतिविधियों की जानकारी प्रशासन को देनी होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अगली बार मुख्यमंत्री के दौरे पर यह सांड सरकारी योजनाओं का लाभार्थी बनकर गौशाला में मिलेगा या फिर किसी और शहर के वीआईपी रूट पर नई सुर्खियां बनाएगा।
आखिर, लोकतंत्र में हर किसी की भागीदारी होनी चाहिए—बस वीआईपी मूवमेंट के समय नहीं!

VIKAS TRIPATHI
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