महाराष्ट्र की राजनीति में आज जो दृश्य देखने को मिला, वह बीते दो दशकों की दरारों पर मराठी अस्मिता की चादर बिछा देने जैसा था। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, जो वर्षों से अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे, अब मराठी स्वाभिमान के नाम पर एक मंच पर आ खड़े हुए हैं।
हिंदी थोपने के खिलाफ जन आंदोलन और ‘सरकार की हार’
पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र में भाषा को लेकर जबरदस्त सियासी उबाल रहा। देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा लाया गया त्रिभाषा फार्मूला मराठी समाज को नागवार गुज़रा।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने सबसे पहले इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोला और सड़कों पर उतर आई। तेज़ विरोध के बाद शिवसेना (उद्धव गुट) भी आंदोलन में शामिल हुई।
जनदबाव के सामने सरकार को झुकना पड़ा और उसने त्रिभाषा नीति का GR (सरकारी आदेश) वापस ले लिया। इसके बाद मुंबई में मराठी लोगों की ऐतिहासिक विजय रैली आयोजित की गई – एक रैली जिसने न केवल भाषा की लड़ाई जीती, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को भी बदल कर रख दिया।
राज ठाकरे का सोशल मीडिया पोस्ट: विजय, माफी और संकल्प
विजय रैली के बाद राज ठाकरे ने ‘X’ (पूर्व ट्विटर) पर एक मार्मिक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा: “आज मुंबई में मराठी जनता की एक विजयी सभा आयोजित की गई।
इस आंदोलन में साथ खड़े रहे सभी मराठी न्यूज चैनलों, अखबारों, संगठनों, कलाकारों और जागरूक नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूँ।
मैं उन मीडिया और व्यक्तियों से क्षमा चाहता हूं जिनका नाम मंच से लेना संभव नहीं हो सका।
यह एकता मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए आगे भी बनी रहे — यही मेरी कामना है।”
हिंदी सक्तीच्या बाबतीत मराठी माणसाने सरकारला झुकवलं त्यानंतर आज मुंबईत मराठी माणसांचा विजयी मेळावा झाला. या मेळाव्यात माझ्याकडून एक उल्लेख राहून गेला, त्याबद्दल आधीच दिलगीरी व्यक्त करतो. हिंदी सक्तीच्या विरोधात मराठी वृत्तवाहिन्या, मराठी वर्तमानपत्रं, मराठीसाठी काम करणाऱ्या…
— Raj Thackeray (@RajThackeray) July 5, 2025
20 साल बाद एक मंच, एक मिशन: ठाकरे बंधुओं की ऐतिहासिक मुलाकात
2005 में राज ठाकरे के शिवसेना से अलग होकर MNS बनाने के बाद दोनों भाइयों के बीच एक दीवार खड़ी हो गई थी। वर्षों तक राजनीतिक कटुता बनी रही। लेकिन इस रैली ने उस दीवार को गिरा दिया।
स्टेज पर सिर्फ दो कुर्सियाँ थीं — एक पर राज ठाकरे, दूसरी पर उद्धव ठाकरे। दोनों ने मंच पर गले मिलकर न सिर्फ एक सियासी संकेत दिया, बल्कि एक भावनात्मक पल भी रच दिया।
यहाँ तक कि दोनों नेताओं ने अपने बेटों की भी आपसी मुलाकात करवाई — मानो आने वाले नेतृत्व को भी एकता का पाठ पढ़ाया जा रहा हो।
संजय राउत बोले – “यह त्यौहार है, मराठी आत्मा की जीत है”
शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने इस घटनाक्रम को त्यौहार करार दिया। उन्होंने कहा:“आज हर मराठी घर में खुशी का माहौल है। यह मराठी आत्मा की जीत है।
यह उन सबके लिए संदेश है जो मराठी पहचान को मिटाना चाहते हैं।
मुझे गर्व है कि मैंने इस लड़ाई में एक मराठी सिपाही की तरह हिस्सा लिया।”
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि राज ठाकरे और उनके बीच लगातार बातचीत होती रही है, जिसने इस एकता को संभव बनाया।“राजनीति में संवाद ज़रूरी है। विरोधियों से भी बात करनी पड़ती है। यही राजनीति की परिपक्वता है।”
राजनीति से ऊपर ‘मराठी’
इस विजय रैली ने यह साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र में भाषा, संस्कृति और अस्मिता की लड़ाई राजनीति से बड़ी है।
ठाकरे बंधुओं की यह नजदीकी न केवल सत्ता को सीधा संदेश है, बल्कि आने वाले दिनों में मराठी राजनीति के नए नक्शे की प्रस्तावना भी है।
यह एक नई शुरुआत है – मराठी के लिए, महाराष्ट्र के लिए, और स्वाभिमान के लिए।