Tuesday, July 1, 2025
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एमएसएमई की रीढ़ मजबूत कर रहा है यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

देश की अर्थव्यवस्था में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) वर्ग की भूमिका कितनी अहम है, यह किसी परिचय का मोहताज नहीं। यह वर्ग न केवल करोड़ों लोगों को रोजगार देता है, बल्कि निर्यात और नवाचार के क्षेत्र में भी निर्णायक योगदान करता है। ऐसे में यदि कोई वित्तीय संस्था इस वर्ग को मजबूती देने का बीड़ा उठाती है, तो वह निःसंदेह सराहना की पात्र होती है।

29 अप्रैल 2025 को नोएडा में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एमएसएमई और चालू-बचत खाता (कासा) केंद्रित आउटरीच कैंप इसी दिशा में एक ठोस कदम है। MSME मंत्रालय, सीए संस्थान और नोएडा एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के सहयोग से आयोजित इस भव्य कार्यक्रम ने सैंकड़ों उद्यमियों को न केवल सरकार की योजनाओं से जोड़ा, बल्कि उन्हें बैंकिंग सहायता के व्यावहारिक पहलुओं की भी जानकारी दी।

कार्यक्रम में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के केंद्रीय महाप्रबंधक बीजू वासुदेवन और एनसीआर मंडल प्रमुख संजय नारायण की भागीदारी ने इस बात का स्पष्ट संकेत दिया कि यह सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि बैंक की दूरदर्शिता का हिस्सा है। उन्होंने अपने वक्तव्यों में न केवल ब्रांचों को एमएसएमई वर्ग को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए, बल्कि यह भरोसा भी दिलाया कि बैंक इस वर्ग के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ा रहेगा।

कार्यक्रम में एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह नाहटा द्वारा नोएडा-ग्रेटर नोएडा के औद्योगिक विकास की तस्वीर खींचते हुए और बैंक से नई शाखाएं खोलने की मांग, इस क्षेत्र के बढ़ते औद्योगिक महत्व को रेखांकित करती है। साथ ही चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की ओर से उद्योगों और बैंक के बीच की औपचारिकताओं को सरल बनाने की अपील यह दर्शाती है कि यह सहयोग बहुआयामी है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि MSME मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. आर.के. भारती ने न केवल योजनाओं को सरल शब्दों में समझाया, बल्कि बैंक के इस प्रयास की प्रशंसा करते हुए इसे “नीति और व्यवहार के बीच की दूरी को पाटने वाला” आयोजन बताया।

यह कार्यक्रम इस बात का प्रतीक है कि जब बैंक, उद्योग संगठन, विशेषज्ञ और सरकारी विभाग एक मंच पर आते हैं, तो न केवल योजनाएं प्रभावशाली बनती हैं, बल्कि ज़मीन पर उनका क्रियान्वयन भी सुनिश्चित होता है।

आज देश को ऐसे ही प्रयासों की जरूरत है, जहां बैंक केवल ऋणदाता नहीं बल्कि साझेदार बनें, और उद्योग केवल लाभ की खोज नहीं बल्कि सृजन का माध्यम बनें। यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की यह पहल इसी बदलाव की ओर एक प्रेरक संकेत है।

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