नई दिल्ली — अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने के ऐलान के बाद दोनों देशों के बीच तनाव तेज हो गया है। इस फैसले से भारतीय व्यापारियों और आयात-निर्यात के रूझानों पर व्यापक असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। इसी पृष्ठभूमि में यह संभावना उभर रही है कि अगले महीने होने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच द्विपक्षीय बातचीत हो सकती है — दोनों नेताओं की आमने-सामने मुलाकात को रिश्तों को पटरी पर लाने का एक अवसर माना जा रहा है।
क्या कहा गया — टैरिफ की परतें
अमेरिका की नई कार्रवाई में पहले 25% टैरिफ लगाने के बाद, रूसी तेल खरीद पर अंकुश के चलते उस पर अतिरिक्त 25% का प्रावधान जोड़कर कुल 50% तक का शुल्क लगाने की घोषणा की गयी — नतीजतन अब दोहरे स्तर का टैरिफ लागू हो चुका है। इस फैसले से भारत की उद्यमशीलता, तेल-आयात के झुकाव तथा अनेक व्यापारिक शृंखलाओं पर दबाव बढ़ने की सम्भावना है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस तल्ख कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था की तरह भारत अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगा, और यह कहना अनुचित है कि केवल भारत को निशाना बनाया जा रहा है। (सरकारी बयान के शब्दावलीकरण पर आगे आधिकारिक स्पष्टीकरण आएगा।)
UNGA यात्रा और संभावित बैठक की रुपरेखा
संयुक्त राष्ट्र महासभा का 80वाँ सत्र 9 सितंबर से शुरू हो रहा है और हाई-लेवल जनरल डिबेट 23 से 29 सितंबर तक चलेगा। प्रारम्भिक वक्तव्यसूची में भारत के प्रधानमंत्री के लिए 26 सितंबर को बोलने का समय रखा गया है — हालांकि यह अभी संभावित है और अंतिम पुष्टि शेष है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी अमेरिकी दौरे के दौरान ट्रम्प से शॉर्ट-पेयरिंग कर सकते हैं, ताकि द्विपक्षीय तनाव पर बात की जा सके।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि परस्पर उच्चस्तरीय वार्ता — खासकर व्यक्तिगत मुलाकातें — बेहतर संचार और समझ के द्वार खोलती हैं। ऐसे मौके पर दोनों नेताओं के सामने आर्थिक एवं सुरक्षा-मुद्दों पर त्वरित परस्पर समझौते या संवाद के रास्ते खुल सकते हैं।
पृष्ठभूमि — पिछला द्विपक्षीय घटनाक्रम
इससे पहले इस वर्ष फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे और राष्ट्रपति ट्रम्प से मुलाकात के बाद दोनों पक्षों ने 2025 तक बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (multi-sector Bilateral Trade Agreement) के पहले चरण पर बातचीत करने की योजना साझा की थी। तब दोनों देशों के बीच आर्थिक वार्ता को तीव्र करने का इरादा जाहिर किया गया था — अब टैरिफ विवाद ने वही संवाद फिर से तेज़ गति से चलाने के दबाव को जन्म दिया है।
कारोबार पर असर और प्रतिक्रिया
व्यापार समुदाय की चिंता यह है कि उच्च टैरिफ से आयात-मुक्ता ढांचे में बदलाव आएगा, लागत बढ़ेगी तथा भारतीय ग्राहक और उद्योग महंगाई व आपूर्ति-शृंखला संकट का सामना कर सकते हैं। तेल पर लगाए गए अतिरिक्त शुल्क विशेष रूप से ऊर्जा-खपतशील उद्योगों और परिवहन लागत पर सीधा प्रभाव डाल सकते हैं। वहीं नीति-निर्माताओं के सामने अब वैकल्पिक बाजार तलाशने, कूटनीतिक बातचीत और घरेलू संरक्षण-उपायों का संयुक्त विवेकपूर्ण उपयोग करने की चुनौती है।
आगे क्या होने की सम्भावना है
अगर प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प की बैठक तय होती है तो दोनों नेताओं के बीच सीधे संवाद के जरिए टैरिफ का विवाद हल करने के रास्ते तलाशे जा सकते हैं; दाम्पत्य शिखरवार्ता में व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा पर विस्तृत बातचीत संभव है।
दूसरी ओर, यदि द्विपक्षीय चर्चा निरन्तर और औपचारिक चैनलों द्वारा जारी रहती है, तो दोनों देशों के वाणिज्यिक और राजनयिक निकायों के स्तर पर समस्या-समाधान और समझौते देखे जा सकते हैं।
भारत की प्राथमिकता रहेगी कि राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा और ऊर्जा-आपूर्ति निर्बाध बनी रहे; इस दृष्टि से सरकार वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता और घरेलू समायोजन दोनों पर काम कर सकती है।