आगर्तला — त्रिपुरा की टिप्रा मोथा पार्टी के विधायक रंजीत देबबर्मा ने सोमवार को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) से आग्रह किया है कि यदि कोई आदिवासी महिला गैर-आदिवासी पुरुष से विवाह करती है तो उसे मिलने वाली विशिष्ट एसटी सुविधाएँ और अधिकार तुरंत बंद कर दिए जाएँ।
रंजीत देबबर्मा ने NCST के प्रमुख को लिखे अपने पत्र में आरोप लगाया है कि कई गैर-आदिवासी पुरुष टैक्स और अन्य लाभ हासिल करने के उद्देश्य से आदिवासी महिलाओं से विवाह कर रहे हैं। पत्र में कहा गया है कि बिना कर चुकाए कई लोगों ने जमीन-जायदाद खरीद ली है और टीटीएडीसी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई भी शुरू कर दी गई है।
विधायक ने यह भी लिखा कि गैर-एसटी/गैर-एसटी युवकों ने बड़े पैमाने पर जमीन खरीदकर उन पर बागवानी और रबर के प्लांट लगाए हैं। उन पर आरोप है कि ऐसे युवा सरकारी टैक्सों और अन्य लाभों से छूट पाने के लिए आदिवासी लड़कियों से विवाह कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने NCST से अपील की है कि त्रिपुरा में इस तरह के विवाहों पर तत्काल प्रभावी रोक लगाने की पहल की जाए और जिन लोगों ने ऐसे विवाह किए हैं, उनकी सभी एसटी संबंधी सुविधाएँ रद्द कर दी जाएँ।
पृष्ठभूमि — पूर्व मांग और समान उदाहरण
यह मांग नई नहीं है। साल 2018 में इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के तिप्राहा गुट ने भी समान प्रस्ताव रखा था कि आदिवासी महिला यदि गैर-आदिवासी पुरुष से विवाह कर ले तो उसकी एसटी (अनुसूचित जनजाति) की पहचान समाप्त कर दी जाए। यही कदम मेघालय की खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC) द्वारा पारित उसी तरह के कानून के कुछ माह बाद उठाया गया था, जिसमें खासी जनजाति की महिला के गैर-आदिवासी पुरुष से विवाह करने पर उसके एसटी दर्जे को समाप्त करने का प्रावधान शामिल था।
निहितार्थ और विवादित पहलू
रंजीत देबबर्मा के पत्र में उठाए गए आरोप यदि सत्य पाए गए तो इससे न केवल स्थानीय जमीन-स्वामित्व और पर्यावरणीय संतुलन पर असर पड़ेगा, बल्कि आदिवासी समुदायों के अधिकार और संवैधानिक सुविधाओं की रक्षा के लिए भी नए कदम उठाने की मांग तेज होगी। दूसरी ओर, ऐसे मामलों में व्यक्तिगत अधिकार, संप्रेषित सहमति तथा संवैधानिक कार्यप्रणाली से जुड़ी जटिलताएँ भी पैदा हो सकती हैं—जिसका समाधान संवैधानिक और कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से ही होना चाहिए।