बॉलीवुड ने आज एक और बड़ा सितारा खो दिया। मशहूर एक्टर और कॉमेडियन असरानी अब इस दुनिया में नहीं रहे। 84 वर्षीय असरानी का दिवाली के दिन, सोमवार (20 अक्टूबर) को निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे असरानी पिछले पांच दिनों से मुंबई के आरोग्य निधि अस्पताल में फेफड़ों की समस्या के चलते भर्ती थे, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि उनके मैनेजर बाबुभाई थीबा ने की है।
परिवार ने असरानी के आख़िरी सफर को भी बेहद सादगी से पूरा किया। उनकी इच्छा के अनुसार, उनका अंतिम संस्कार उसी दिन सांताक्रूज़ वेस्ट के शास्त्री नगर श्मशान गृह में चुपचाप किया गया। असरानी हमेशा चाहते थे कि उनके जाने के बाद कोई शोर-शराबा न हो और सब कुछ शांतिपूर्वक किया जाए।
सिनेमा का सफर
1 जनवरी 1941 को जयपुर में जन्मे गोवर्धन असरानी, भारतीय सिनेमा के उन कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने 50 साल से अधिक समय तक फिल्मों में सक्रिय रहकर दर्शकों को हंसाया, रुलाया और मनोरंजन किया। जयपुर के सेंट जेवियर्स स्कूल और राजस्थान कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1967 में ‘हरे कांच की चूड़ियां’ फिल्म से डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनके करियर में सैकड़ों यादगार फिल्में रहीं — शोले, चितचोर, अभिमान, आँखें, छोटी सी बात, हम, राजा बाबू, लगान, और भूल भुलैया जैसी फिल्मों में उन्होंने अपनी कॉमेडी और अभिनय से खास जगह बनाई।
शोले का अमर किरदार
असरानी का सबसे प्रतिष्ठित किरदार रहा — ‘शोले’ के जेलर साहब, जिनका मशहूर डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर है —
“हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं!”
यह एक संवाद ही असरानी को हमेशा के लिए भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर कर गया।
परिवार और निजी जीवन
असरानी ने साल 1973 में अभिनेत्री मंजू बंसल से शादी की थी। उनका एक बेटा नवीन असरानी है, जो अहमदाबाद में डेंटिस्ट हैं। असरानी के पिता जयपुर में कार्पेट की दुकान चलाते थे, और उनके परिवार में तीन भाई और चार बहनें थीं।
असरानी का जाना फिल्म जगत और दर्शकों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपनी सहज कॉमेडी और बेहतरीन टाइमिंग से हर पीढ़ी के दिलों में अपनी जगह बनाई।
आज सिनेमा जगत नम आंखों से कह रहा है —
“हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर को कभी नहीं भूल पाएंगे।”














