कोलकाता, जुलाई 2025 — पश्चिम बंगाल के औद्योगिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने वाला है। टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने हाल ही में कोलकाता स्थित राज्य सचिवालय ‘नवान्न’ में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की। यह मुलाकात प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि राज्य में औद्योगीकरण, निवेश और टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन की नई राहें खोलने वाली हो सकती है।
सिंगूर से गुजरात और अब दोबारा बंगाल: एक प्रतीकात्मक वापसी?
इस बैठक को सिंगूर विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है। साल 2006-2008 के बीच टाटा की महत्वाकांक्षी नैनो कार फैक्ट्री को लेकर पश्चिम बंगाल के सिंगूर में जबरदस्त विरोध हुआ था। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए किसान आंदोलनों के बाद टाटा समूह ने अपनी परियोजना गुजरात स्थानांतरित कर दी थी।
उस समय रतन टाटा ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि “पश्चिम बंगाल के साथ हमारा रिश्ता समाप्त हो गया है” — और यही कथन टाटा-बंगाल संबंधों में ठहराव का प्रतीक बन गया।
एक नई शुरुआत: निवेश, विश्वास और विकास की संभावनाएं
मगर अब, लगभग दो दशक बाद, एन. चंद्रशेखरन और ममता बनर्जी की यह मुलाकात नई संभावनाओं के द्वार खोल रही है। बैठक में टेक्नोलॉजी, मैन्युफैक्चरिंग और रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्रों में संभावित निवेश और सहयोग पर चर्चा हुई।
सूत्रों के अनुसार, टाटा समूह राज्य में ग्रीन एनर्जी, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, डिजिटल टेक्नोलॉजी और एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश को लेकर गंभीर है। इससे राज्य में हजारों नए रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं और बंगाल की छवि एक बार फिर औद्योगिक केंद्र के रूप में उभर सकती है।
ममता बनर्जी की रणनीतिक जीत और नीति का असर
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए यह मुलाकात सिर्फ एक निवेश प्रस्ताव नहीं, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक रणनीति की बड़ी सफलता है। लंबे समय तक टाटा समूह से दूरी के बाद यह पहल दर्शाती है कि उनकी सरकार विश्वास बहाली और कॉर्पोरेट सहयोग में अब सफल हो रही है।
राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स, नीतिगत स्थिरता और निवेशक अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में किए गए प्रयास अब रंग ला रहे हैं।
बंगाल की औद्योगिक साख की बहाली की ओर पहला कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि टाटा समूह की वापसी केवल एक कंपनी का निवेश नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पुनर्वास है। यदि यह साझेदारी मूर्त रूप लेती है, तो यह संकेत जाएगा कि पश्चिम बंगाल अब व्यवसाय के लिए तैयार है और यहां की राजनीतिक स्थिरता, श्रम नीति और औद्योगिक व्यवहार्यता को लेकर निवेशकों का भरोसा बहाल हो रहा है।
आगे क्या?
अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि टाटा समूह राज्य में किस क्षेत्र में और कितनी राशि का निवेश करेगा, और यह सहयोग किस रूप में नीति और परियोजनाओं में बदलेगा। आने वाले हफ्तों में संभावित MoU, परियोजना घोषणाएं और जमीनी पहल इस साझेदारी को और स्पष्ट बनाएंगी।
एक प्रतीकात्मक वापसी, एक व्यावहारिक शुरुआत
सिंगूर से जो दर्दनाक विराम शुरू हुआ था, आज उसकी पटकथा नए सिरे से लिखी जा रही है। ममता बनर्जी की नीतिगत दृढ़ता और रणनीतिक दृष्टि, और टाटा समूह की भविष्यदृष्टि और उद्यमिता — मिलकर बंगाल को एक बार फिर उद्योग और रोजगार का केंद्र बना सकते हैं।