“मैं खुद सतत विकास का समर्थक हूं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि जंगल को रातोंरात 30 बुलडोजरों से साफ कर दो” — यह तीखी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को उस वक्त दी जब तेलंगाना के कांचा गाचीबोवली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई का मामला अदालत के संज्ञान में आया।
सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ — सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची — ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए तेलंगाना सरकार को सख्त चेतावनी दी। कोर्ट ने कहा कि सतत विकास कोई बहाना नहीं है, जिससे जंगल का समूल नाश कर दिया जाए।
“30 बुलडोजर, एक रात, और खत्म हुआ जंगल!”
कोर्ट ने इस कार्रवाई को पूर्व नियोजित साजिश करार देते हुए कहा कि जब अदालतें बंद थीं और एक लंबा वीकेंड था, उसी दौरान यह कटाई की गई — क्या यह जानबूझकर अदालत की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश नहीं है? कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अगर यह अवैध नहीं था तो रात के अंधेरे में क्यों हुआ?
“अधिकारियों को भेजना होगा जेल, या बहाल करें जंगल”
सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को स्पष्ट चेतावनी दी थी:“यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है — या तो आप पेड़ों को बहाल करें या अपने अधिकारियों को जेल भेजें।”
16 अप्रैल को कोर्ट ने फटकार लगाते हुए आदेश दिया कि यदि तेलंगाना सरकार अपने मुख्य सचिव को किसी भी कड़ी कार्रवाई से बचाना चाहती है, तो उसे स्पष्ट योजना प्रस्तुत करनी होगी कि 100 एकड़ कटे हुए वन क्षेत्र को कैसे पुनः स्थापित किया जाएगा।
“अगली सुनवाई 13 अगस्त को, यथास्थिति बनाए रखें”
इस मामले की अगली सुनवाई अब 13 अगस्त को होगी। तब तक सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि क्षेत्र में कोई और पेड़ न काटे जाएं, और पूर्व स्थिति को जस का तस बनाए रखा जाए।
तेलंगाना सरकार की मुश्किलें बढ़ीं
इस पूरे मामले ने न सिर्फ तेलंगाना सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन के मुद्दे पर देशव्यापी बहस को जन्म दे दिया है।
क्या विकास की आड़ में विनाश हो रहा है? क्या वन विभाग और राज्य प्रशासन निजी हितों के आगे घुटने टेक चुके हैं?