Wednesday, August 13, 2025
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सुप्रीम कोर्ट के stray-dog आदेश पर विवाद: मेनका गांधी ने पेरिस का उदाहरण देकर आलोचना की — लागू करना चुनौतीपूर्ण और महंगा, मगर सुरक्षा भी चिंता का विषय है

नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को उठाकर आठ हफ्ते के भीतर शेल्टर-होम में पुनःस्थापित करने, नसबंदी-टीकाकरण कराने और शेल्टरों में सीसी-टीवी व रिकॉर्डिंग रखने का कड़ा निर्देश दिया। कोर्ट ने captured कुत्तों को सार्वजनिक जगह पर वापस छोड़े जाने पर भी रोक लगाई है और आदेश का उल्लंघन अवमानना माना जाने की चेतावनी दी है।

इस फैसले के बाद व्यापक सार्वजनिक व राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई है — पीड़ित परिवारों और कुछ नागरिकों ने आदेश का स्वागत किया है, पर पशु-कल्याण कार्यकर्ता, विशेषज्ञ और कुछ राजनैतिक हस्तियों ने इसे अव्यावहारिक और हानिकारक बताते हुए चिंता जताई है।

मेनका गांधी की आपत्तियाँ और पेरिस का उदाहरण

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु-अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने अदालत के निर्देशों की तीखी आलोचना की। उन्होंने व्यवस्था को आर्थिक रूप से अव्यवहारिक बताया और दावा किया कि शेल्टर-होम बनाने व संचालन के लिये बड़े स्तर पर जमीन और लागत की आवश्यकता होगी — मीडिया उद्धरणों में यह अंदाज़ा ~₹15,000 करोड़ तक बताया जा रहा है। मेनका ने चेतावनी दी कि कुत्तों को सड़कों से हटा लेने से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है और ऐतिहासिक उदाहरणस्वरूप 1880 के दशक के पेरिस की ओर इशारा किया, जहां कभी-कभार कुत्तों/बिल्लियों के नियंत्रण के बाद चूहों की संख्या बढ़ने के किस्से बताए जाते रहे हैं।

(नोट: पेरिस के संदर्भ में ऐतिहासिक विवरण जटिल और विवादास्पद हैं — कुछ शोधपत्रों व इतिहासकारों के अलग-अलग निष्कर्ष हैं; मेनका गांधी ने यह उदाहरण सावधानीपूर्वक चेतावनी के रूप में दिया।)

विशेषज्ञों की टिप्पणी — दीर्घकालिक उपाय बनाम त्वरित कार्रवाई

पशु-कल्याण संगठनों और वेक्टर-नियंत्रण विशेषज्ञों का कहना है कि केवल पकड़कर शेल्टर में बंद करना दीर्घकालिक समाधान नहीं है। वे ABC (Animal Birth Control) मॉडल — बड़े पैमाने पर नसबंदी, सामुदायिक टीकाकरण और नियंत्रित फीडिंग-जोन — को प्राथमिकता दें, वरना “वैक्यूम इफ़ेक्ट” व生态-संतुलन में गड़बड़ी से नए जोखिम उभर सकते हैं। कई समाचार विश्लेषणों में भी यही बिंदु उठाया गया है कि आदेश लागू करने की समयसीमा व लागत बड़े प्रशासनिक प्रश्न खड़े करती हैं।

प्रशासनिक चुनौती और संभावित लागत

दिल्ली-NCR में अनुमानित आवारा कुत्तों की संख्या (स्रोतों के अलग-अलग आकलन मिलते हैं) और मौजूदा शेल्टर-क्षमता के बीच भारी अंतर है — नगर निकायों के पास वर्तमान में संचालित सेन्टर और संसाधन बेहद सीमित हैं। अनेक रिपोर्टों में आदेश लागू करने की कुल अनुमानित लागत और 8-सप्ताह जैसी तंग समयसीमा को असंभव बताया जा रहा है, जबकि कोर्ट ने यह कदम बढ़ती डॉग-बाइट और रेबीज़ के मामलों को देखते हुए सार्वजनिक सुरक्षा प्राथमिकता के तहत उठाया है।

पक्ष और विपक्ष — भावनात्मक और कानूनी आयाम

समर्थक तर्क: जिन परिवारों के सदस्य डॉग-बाइट या रेबीज़ से प्रभावित हुए हैं, वे अदालत के आदेश को जन-सुरक्षा के लिए जरूरी मान रहे हैं।

विरोधी दलीलें: पशु-कल्याण कार्यकर्ता और कुछ राजनेता आदेश को क्रूर/अव्यवहारिक बताते हुए मिलिजुली रणनीति (ABC + समुदाय सहभागिता) अपनाने की अपील कर रहे हैं; साथ ही कईयों ने कानूनी और तार्किक आधारों पर आदेश की समयसीमा एवं लागू करने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। मेनका गांधी ने विशेष रूप से बताया कि पकड़े जाने पर कुत्ते अधिक आक्रामक हो जाते हैं और इससे हालात बिगड़ सकते हैं।

क्या अपेक्षा रखें — अगले कदम

स्थानीय नगर निगम और राज्य प्रशासन को अदालत के निर्देशों के अनुपालन का कार्य-योजना प्रस्तुत करना होगा; इसकी व्यवहार्यता, समयबद्धता और वित्तपोषण की जांच अभी प्रमुख चुनौती बनेगी।

पशु-कल्याण संगठन, विशेषज्ञ और नागरिक समूह कानूनी व धरातलीय स्तर पर वैकल्पिक व संयुक्त मॉडल पर चर्चा जारी रखेंगे — कई जगहों पर प्रदर्शन और अपील की खबरें भी आई हैं।


सुप्रीम कोर्ट का आदेश सार्वजनिक सुरक्षा और बच्चों में बढ़ते रेबीज़-खतरे को देखते हुए कठोर कदम उठाने का संकेत देता है, पर उसकी तात्कालिकता, लागत और व्यवहारिकता प्रश्नों के घेरे में है। मेनका गांधी जैसे पशु-केंद्रित कार्यकर्ताओं की चेतावनियाँ — ऐतिहासिक संदर्भों का हवाला देकर — यह रेखांकित करती हैं कि नीतिगत निर्णयों को वैज्ञानिक, आर्थिक और पारिस्थितिक विश्लेषण के साथ लागू करना आवश्यक है। अंतिम शब्द तब तक स्थिर नहीं होगा जब तक अदालत, प्रशासन और नागरिक-पक्ष मिलकर व्यवहारिक, मानवीय और सुरक्षित समाधान पर सहमत न हों।

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VIKAS TRIPATHI
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