नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में एक हत्या के मामले में आरोपी को बरी करने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है, और साफ किया कि हतियार पर मिला खून मृतक के ब्लड ग्रुप से मैच करता है, यह तथ्य आरोप सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता।
जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए राजस्थान सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी को बरी किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि केवल एफएसएल रिपोर्ट या हथियार पर मिले खून के डीएनए/ब्लड ग्रुप के आधार पर मौत का दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं है।
राजा नायक केस का दिया हवाला
बेंच ने अपने फैसले में ‘राजा नायक बनाम छत्तीसगढ़ राज्य’ मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि कोई हथियार बरामद होता है और उस पर रक्त पाया जाता है जो पीड़ित के ब्लड ग्रुप से मेल खाता है, तब भी यह अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि अन्य ठोस साक्ष्य उपलब्ध न हों।
कोर्ट ने कहा, “हम फॉरेंसिक रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं कर सकते, लेकिन इन्हें अंतिम और निर्णायक साक्ष्य नहीं माना जा सकता। सजा केवल उन्हीं परिस्थितियों में दी जानी चाहिए, जब सभी साक्ष्य केवल आरोपी की संलिप्तता की ओर इशारा करें और उसके निर्दोष होने की संभावना को पूरी तरह खारिज कर दें।”
क्या है पूरा मामला?
यह केस 2007 में हुए छोटू लाल नामक व्यक्ति की हत्या से जुड़ा है। 1 और 2 मार्च की रात छोटू लाल की हत्या हुई थी और शुरू में मामला अज्ञात आरोपियों के खिलाफ दर्ज हुआ। जांच के दौरान एक व्यक्ति को संदिग्ध मानते हुए गिरफ्तार किया गया और उसके खिलाफ धारा 302 IPC के तहत केस दर्ज कर 2008 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि आरोपी की मृतक की पत्नी पर बुरी नज़र थी, और यह हत्या उसी कारण से की गई। साथ ही हत्या में इस्तेमाल हथियार पर मिले खून का ब्लड ग्रुप बी+ बताया गया, जो मृतक का था।
हालांकि, कोर्ट ने पाया कि केवल ब्लड ग्रुप के मिलान और कथित मकसद के आधार पर दोष साबित नहीं किया जा सकता, और परिस्थिजन्य साक्ष्य अपर्याप्त हैं।
हाईकोर्ट से मिली राहत, अब सुप्रीम कोर्ट से भी छूट
इस मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट ने 2015 में पलट दिया था, और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यह कहते हुए उस फैसले को सही ठहराया कि सबूतों का अभाव आरोपी को दोषमुक्त करने के लिए पर्याप्त आधार है।
न्यायिक निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि “किसी को दोषी तभी ठहराया जा सकता है, जब साक्ष्य संदेह से परे हों और पूरी तरह से उसकी संलिप्तता को दर्शाएं।” इस मामले में ऐसे सबूत नहीं मिले, इसलिए आरोपी को बरी किया जाना न्यायोचित है।