नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सिंगल मदर के बच्चे को OBC प्रमाणपत्र देने की पात्रता से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई की। इस मामले को संवेदनशील और व्यापक असर वाला मानते हुए न्यायालय ने 22 जुलाई को अगली सुनवाई तय की है। सुनवाई जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच के समक्ष हुई, जिसमें अदालत ने कहा कि यह मुद्दा गहन विचार का विषय है और इस पर विस्तृत बहस की आवश्यकता है।
क्या है याचिका का तर्क?
दिल्ली निवासी एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उसका कहना है कि जब वह सिंगल मदर है और OBC प्रमाणपत्र की पात्रता रखती है, तो उसके बच्चे को भी उसी आधार पर OBC प्रमाणपत्र मिलना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि बच्चे को प्रमाणपत्र देने में केवल पिता की जाति को आधार बनाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है और यह भेदभावपूर्ण है।
केंद्र सरकार और कोर्ट की टिप्पणियां
केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह मामला गहन विमर्श की मांग करता है और सभी राज्यों को पक्षकार बनाकर उनकी राय ली जानी चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि इस मुद्दे पर दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत है ताकि समान रूप से पूरे देश में एकरूपता लाई जा सके।
सुनवाई के दौरान पीठ ने 2012 में आए अपने फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि माता-पिता में से कोई एक SC/ST श्रेणी से है और दूसरा नहीं, तो बच्चे की श्रेणी निर्धारण के लिए दोनों पक्षों पर विचार किया जाएगा। कोर्ट ने पक्षकारों को अपने लिखित जवाब दाखिल करने और विशेष रूप से उस स्थिति पर विचार करने को कहा, जहां सिंगल मदर ने इंटरकास्ट विवाह किया हो।
क्या हो सकती है दिशा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए 22 जुलाई को अंतिम सुनवाई की तारीख तय की है। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्ष 22 जुलाई से पहले अपना लिखित पक्ष रखें ताकि अंतिम बहस के दौरान सभी पहलुओं पर समुचित विचार किया जा सके।
याचिकाकर्ता का दावा है कि दिल्ली सरकार की यह नीति, जिसमें बच्चे को OBC प्रमाणपत्र देने के लिए केवल पिता की जाति का प्रमाण मांगा जाता है, संविधान की समानता की गारंटी और सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ है। उनका तर्क है कि सिंगल मदर के बच्चे को भी वही अधिकार मिलना चाहिए जो किसी भी OBC श्रेणी में जन्मे बच्चे को मिलते हैं।
मामला क्यों है अहम?
यह मामला न केवल जातिगत प्रमाणपत्रों की व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि यह सिंगल पेरेंट परिवारों और इंटरकास्ट विवाहों से जन्मे बच्चों के अधिकारों से भी जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने वाले समय में लाखों ऐसे बच्चों और परिवारों के लिए दिशा तय कर सकता है, जो समान परिस्थितियों से गुजर रहे हैं।
👉 यह सुनवाई सामाजिक न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है, जो जातिगत प्रमाणपत्रों में लिंग और पारिवारिक संरचना के आधार पर हो रहे भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में नया मानक तय करेगी।