सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि वह देश भर में होने वाली हर नफ़रत भरे भाषण की घटना पर कानून बनाने या निगरानी रखने के लिए तैयार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों के लिए पहले से ही कानूनी तंत्र मौजूद है—पुलिस थाने, हाई कोर्ट और अन्य वैधानिक उपाय।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक विशेष समुदाय के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के कथित आह्वान की शिकायत की गई थी।
“हर छोटी घटना पर सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा निगरानी”
पीठ ने साफ़ कहा—
“हम इस याचिका के आधार पर कोई कानून नहीं बना रहे हैं। देश के किसी भी हिस्से में होने वाली हर छोटी-छोटी घटना पर हम नजर नहीं रख सकते। इसके लिए हाई कोर्ट और पुलिस जैसे तंत्र पहले से मौजूद हैं।”
कोर्ट ने आवेदक को सुझाव दिया कि वह अपनी शिकायत लेकर संबंधित हाई कोर्ट जाए। इस पर आवेदक की ओर से पेश वकील ने बताया कि उन्होंने पहले से लंबित एक रिट याचिका में यह मुद्दा उठाया हुआ है।
अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि नफ़रत भरे भाषण का मुद्दा किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, “सभी धर्मों के खिलाफ ऐसे कई बयान दिए जाते हैं। इसके उदाहरण हम आवेदक को उपलब्ध करा देंगे।”
वकील का तर्क था कि अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे, इसलिए वह मामला सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में लाए हैं।
इस्कॉन स्कूलों में कथित यौन शोषण का मामला: एनसीपीसीआर से संपर्क का निर्देश
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस्कॉन द्वारा संचालित स्कूलों में बच्चों के कथित यौन शोषण की जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपनी शिकायत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) में दर्ज कराएं।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के राज्य बाल अधिकार आयोगों को यदि इस तरह की शिकायतें मिलती हैं, तो उन पर समयबद्ध और उचित तरीके से विचार किया जाना चाहिए।














