नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (25 जून) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पुलिस या अन्य जांच एजेंसियां मुवक्किलों को केवल कानूनी सलाह देने वाले वकीलों को सीधे समन जारी नहीं कर सकतीं। अदालत ने इस प्रथा को कानूनी पेशे की स्वायत्तता के खिलाफ बताया और कहा कि इससे न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता पर गहरा असर पड़ेगा।
जस्टिस के. वी. विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन के मूलभूत स्तंभों में से एक है। कोर्ट ने एक वकील द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार किया, जिसमें मार्च 2025 में एक मामले में मुवक्किल को सलाह देने के लिए पुलिस द्वारा जारी नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।
‘न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा’
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी जांच एजेंसी या पुलिस को मुवक्किलों के सलाहकार वकीलों को सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को कमजोर करने के साथ-साथ न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए एक प्रत्यक्ष खतरा है।
बेंच ने इस पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए, जिनमें शामिल था कि क्या जांच एजेंसी किसी वकील को केवल इस आधार पर तलब कर सकती है कि वह मुवक्किल को कानूनी सलाह दे रहा है? साथ ही अदालत ने यह भी पूछा कि अगर वकील का रोल केवल कानूनी सलाहकार से अधिक है, तब भी क्या सीधे समन भेजना उचित है, या फिर इसके लिए विशेष परिस्थितियों में न्यायिक निगरानी आवश्यक होनी चाहिए।
गुजरात सरकार से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही, अदालत ने अगले आदेश तक संबंधित वकील को तलब करने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने पुलिस द्वारा जारी नोटिस पर भी तत्काल प्रभाव से रोक लगाई है, ताकि इस संवेदनशील मुद्दे पर विस्तार से विचार किया जा सके।