
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगभग तीन दिन तक चली विस्तृत सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने गुरुवार को फैसला सुनवाई पूरी होने के बाद सुरक्षित रख लिया। इस दौरान कई ऐसे क्षण सामने आए जो अदालती इतिहास में दर्ज हो गए, और जिनकी गूंज लंबे समय तक महसूस की जाएगी।
गंभीर बहस के बीच हल्के फुहार वाले पल भी
सुनवाई के दौरान कुछ पल ऐसे भी आए, जहां वक्फ की परिभाषा और उसके आध्यात्मिक महत्व को लेकर ‘जन्नत की चाह’ जैसी बातों पर कोर्ट रूम में हल्की मुस्कानें देखने को मिलीं। वहीं, दूसरी ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के बीच कई बार तीखी बहस भी देखने को मिली।
मेहता और सिब्बल आमने-सामने
लंच ब्रेक के बाद सुनवाई के दौरान बहस अपने शबाब पर थी। कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ मामलों में कलेक्टर को संपत्ति के निर्धारण का अधिकार देना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने तर्क दिया,
“अगर कोई कलेक्टर कहे कि 200 साल पुराना कब्रिस्तान वक्फ नहीं है, तो क्या हम यह मान लें? क्या सरकार अब कहेगी कि यह जमीन उसकी है?”
सिब्बल ने यह भी कहा,
“हम तुषार मेहता की दलीलों के आधार पर नहीं चल सकते, हमें देखना होगा कि कानून वास्तव में क्या कहता है।”
जिस पर तुषार मेहता ने तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए सिब्बल की दलीलों को “मनगढ़ंत” कहा और अपनी बात दोहराई कि कानून स्पष्ट है और वक्फ अधिनियम 2013 में कुछ नये प्रावधान जोड़े गए हैं, जिनका गैर-मुस्लिम संपत्ति मालिकों पर अनुचित प्रभाव नहीं पड़ता।
विवाद का केंद्र: क्या गैर-मुस्लिम संपत्ति को भी घोषित किया जा सकता है वक्फ?
याचिकाकर्ताओं ने यह सवाल जोरशोर से उठाया कि क्या गैर-मुस्लिमों की संपत्ति को भी वक्फ घोषित किया जा सकता है? क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं है?
इसके जवाब में सरकार की ओर से मेहता ने कहा कि वक्फ अधिनियम में 2013 के संशोधन के बाद कुछ स्थितियों में गैर-मुस्लिम संपत्तियों के वक्फ की बात आई है, लेकिन यह किसी के धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं करता।
फैसला अब सुप्रीम कोर्ट के पास
अब देश की शीर्ष अदालत ने मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है। आने वाले दिनों में इस पर दिया गया फैसला न केवल वक्फ कानून के भविष्य को तय करेगा, बल्कि भारत में धार्मिक संपत्तियों के अधिकार और सीमाओं पर भी एक ऐतिहासिक दिशा देगा।

VIKAS TRIPATHI
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