वाराणसी, उत्तर प्रदेश: जिले के मंडुवाडीह थाना क्षेत्र से पुलिस विभाग की साख को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। एंटी करप्शन टीम वाराणसी ने मंडुवाडीह थाने में तैनात दरोगा अभयनाथ तिवारी और हेड कांस्टेबल शक्ति सिंह यादव को ₹15,000 की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया है। दोनों पुलिसकर्मी एक मुकदमे में राहत दिलाने के एवज में पीड़ित से यह धनराशि मांग रहे थे।
पीड़ित ने एंटी करप्शन टीम को दी सूचना
मामले की शुरुआत तब हुई जब एक पीड़ित व्यक्ति ने आरोप लगाया कि मंडुवाडीह थाने के पुलिसकर्मियों द्वारा उससे जबरन रिश्वत मांगी जा रही है। पीड़ित के अनुसार, एक पुराने आपराधिक मामले में राहत दिलाने के नाम पर उससे ₹15,000 की डिमांड की गई थी।
इसके बाद पीड़ित ने एंटी करप्शन ब्यूरो से संपर्क किया और पूरी जानकारी उपलब्ध कराई। योजना के तहत तीन दिन बाद पीड़ित, एंटी करप्शन टीम के साथ मिलकर निर्धारित स्थान पर पहुंचा, जहां जैसे ही दोनों पुलिसकर्मियों ने रिश्वत की रकम ली, टीम ने उन्हें रंगेहाथ पकड़ लिया।
थाना प्रभारी पर भी गंभीर आरोप
इस मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब पीड़ित ने मीडिया से बातचीत के दौरान थाना प्रभारी भरत उपाध्याय पर भी गंभीर आरोप लगाए। पीड़ित ने कहा:
“मंडुवाडीह थाना प्रभारी भरत उपाध्याय ने जबरदस्ती मेरी पैंट में एक अवैध कट्टा और कारतूस रख दिए, और फिर मुझसे ₹35,000 वसूल लिए।”
यह आरोप अगर सही साबित होते हैं, तो यह केवल एक रिश्वतखोरी का मामला नहीं रह जाएगा, बल्कि यह साक्ष्य गढ़ने और झूठे मुकदमों में फंसाने जैसी आपराधिक साजिश का संकेत देगा। अब निगाहें इस बात पर हैं कि जांच में थाना प्रभारी की भूमिका को लेकर क्या तथ्य सामने आते हैं।
पुलिस महकमे की साख पर सवाल
यह घटना पुलिस विभाग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। जिन अधिकारियों पर जनता की रक्षा का जिम्मा है, अगर वही भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो यह लोकतंत्र और कानून-व्यवस्था के लिए गहरी चिंता का विषय है।
आगे की कार्रवाई पर नजर
फिलहाल एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा दोनों आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ आवश्यक धाराओं में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है। इस मामले में थाना प्रभारी की भूमिका की भी सघन जांच की जा रही है। यदि उनके खिलाफ आरोपों की पुष्टि होती है, तो उनके विरुद्ध भी कड़ी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
वाराणसी की इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि भ्रष्टाचार केवल प्रशासनिक गलियारों तक सीमित नहीं, बल्कि जनसुरक्षा के मोर्चे पर तैनात अधिकारियों के भीतर भी जड़ें जमा चुका है। इस मामले में निष्पक्ष जांच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई आवश्यक है ताकि आमजन का पुलिस पर से विश्वास खत्म न हो।