दिल्ली से बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने औपचारिक रूप से “सनातन हिंदू एकता पदयात्रा 2.0” का शुभारम्भ किया। यह पदयात्रा छतरपुर स्थित कात्यायनी माता मंदिर से निकलकर करीब 10 दिनों में लगभग 150 किलोमीटर तय करते हुए 16 नवम्बर को वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी मंदिर पर समाप्त होगी — और इसके दौरान दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों से होते हुए बड़ा जनसमूह जुड़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
उद्घाटन सभा के दौरान पंडित धीरेंद्र ने पदयात्रा का स्वरूप केवल धार्मिक यात्रा नहीं बल्कि एक वैचारिक क्रांति करार दिया। उनके मुताबिक यह यात्रा “काष्टवाद को शून्य” करने, जातियों का अहंकार घटाने और सनातन धर्म तथा राष्ट्रवाद का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से निकाली जा रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे चाहते हैं कि जातियाँ रहें पर जाति का अहंकार न रहे — और इस लक्ष्य के लिए यह पदयात्रा एक जागरणकारी कदम है।
पंडित धीरेंद्र के बयान और मुख्य दावे
उन्होंने कहा: “भारत में रहने वाला हर व्यक्ति सनातनी है; जो सनातनी नहीं, वह तनातनी है।” इस कथन को उन्होंने लोगों को संगठित करने और सनातन विचारों को फैलाने के संदर्भ में कहा।
उन्होंने पदयात्रा को “80 करोड़ हिंदुओं की” और “150 करोड़ भारतीयों के हित के लिए 150 किलोमीटर” की यात्रा बताया — यह आंकड़ा और दावा आयोजक के मंतव्य/दृष्टिकोण को व्यक्त करता है और इन्हें उन्होंने स्वयं सभा में दोहराया।
पंडित धीरेंद्र ने यह भी कहा कि यदि हिंदू एक नहीं होगा तो भारत हिंदू राष्ट्र नहीं बन सकेगा — इसलिए यह यात्रा हिंदुओं के डर को दूर करने और एकता बढ़ाने की रणनीति है। वे इसे विचारों की लड़ाई मानते हैं, न कि हथियारों की।
समय/तारीख का महत्व — 7 नवम्बर का संदर्भ
धीरेंद्र शास्त्री ने यह भी बताया कि उन्होंने यह यात्रा 7 नवम्बर को आरम्भ करने का विशेष कारण चुना है — इस तारीख को वे इतिहास से जोड़ते हुए उस भावनात्मक और सामूहीक अर्थ को उजागर कर रहे हैं जो संतों और श्रद्धालुओं की स्मृति से जुड़ा है। इस कारण से आज की तिथि को उन्होंने प्रतीकात्मक महत्व दिया।
राह और आयोजकीय तैयारी — भीड़, सुरक्षा और ट्रैफिक
सूचना के अनुसार पदयात्रा के लिए बड़ी संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु जुड़ रहे हैं; प्रशासन ने भीड़ और यातायात को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था, ट्रैफिक एडवाइजरी और आवागमन पर विशेष ध्यान देने की बातें कहीं हैं — इसलिए जिन इलाक़ों से यात्रा गुजरेगी वहां ट्रैफिक में बदलाव और भीड़भाड़ की संभावना बनी रहती है। नागरिकों से संयम और सरकारी निर्देशों का पालन करने का आग्रह किया गया है।
भाषण में धर्मों के प्रति कथन और सीमाएँ
धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि वे किसी अन्य धर्म विशेष के खिलाफ नहीं हैं — “हमें मुसलमानों से दिक्कत नहीं, ईसाइयों से नहीं” — फिर भी उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई “गजवा-ए-हिंद” जैसा बयान देगा तो उनका प्रतिरोध होगा और वे “भगवा-ए-हिंद” का जवाब देंगे, यह रुख उन्होंने सभा में व्यक्त किया। यह बयान भावनात्मक और सशक्त राजनीतिक-धार्मिक संकेत देता है और इसे भी यही आयोजन प्रेरित कर रहा है।
अर्थ, प्रभाव और सतर्क संदेश
1.धार्मिक-आत्मिक असर: आयोजन के आयोजक इसे सनातन विचारधारा का पुनरुत्थान और धार्मिक आत्मावोध का माध्यम बता रहे हैं — अध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेशों की व्यापक प्रसार क्षमता इस तरह के आयोजनों में रहती है।
2.सामाजिक-राजनीतिक संकेत: जब बड़े जनसमूह धार्मिक समरसता और एकता के नारे के साथ सड़कों पर निकलते हैं, तो उसका सामाजिक और कभी-कभी राजनीतिक प्रतिबिंब भी देखने को मिलता है — इसलिए आयोजक और प्रशासन दोनों के लिए आयोजनों को शांतिपूर्ण और संवैधानिक सीमाओं के भीतर रखने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।
3.नागरिकों के लिए अपील: बड़ी भीड़ में शांति बनाए रखना, ट्रैफिक और सुरक्षा निर्देशों का पालन, और किसी भी तरह के नफ़रत-प्रेरित व्यवहार से दूर रहना आवश्यक है — ताकि धार्मिक उत्साह में सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित न हो।
एक अंतर्निहित संदेश — विजय का स्वर
पद्यात्रा की पहचान जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, समर्थक इसे एक धार्मिक और वैचारिक जीत के रूप में देखना चाहेंगे — इसलिए श्रेष्ठ और संवेदनशील रिपोर्टिंग यही बताए कि श्रद्धा के साथ-साथ अनुशासन और शांति भी पदयात्रा का अभिन्न हिस्सा बने। यदि आप समाचार-शीर्षक या उद्घोष के रूप में कुछ भावनात्मक व विजयोपमक पंक्तियाँ चाहते हैं, तो ऐसी पंक्तियाँ इस्तेमाल की जा सकती हैं जो उत्साह दिखाएं पर हिंसा या दूसरों के प्रति अपमान को बढ़ावा न दें — उदाहरण:
“जय सनातन — एकता में शक्ति, शांति में विजय।”














