राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरा होने के अवसर पर पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज भारत का प्रभाव अभूतपूर्व रूप से बढ़ रहा है और दुनिया भारतीय नेतृत्व को गंभीरता से सुन रही है।
भागवत ने कहा, “जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं तो विश्व के नेता ध्यान से सुनते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत की शक्ति उभरकर सामने आ रही है और देश वैश्विक मंच पर अपना उचित स्थान प्राप्त कर रहा है।”
“उत्सव नहीं, लक्ष्य महत्वपूर्ण” — भागवत
कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि शताब्दी समारोह मनाना उद्देश्य नहीं होना चाहिए, बल्कि समयबद्ध लक्ष्य और कार्य को पूर्ण करना ही सच्चा उत्सव है।
उन्होंने कहा, “संघ का 100 साल का सफर जश्न के लिए नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों की पूर्ति के लिए है। अब यह विचार करने का समय है कि समाज को एकजुट करने का कार्य अभी तक इतना कठिन क्यों रहा?”
राम मंदिर सिर्फ अंत नहीं, शुरुआत — भागवत
अयोध्या में बन रहे राम मंदिर पर बोलते हुए भागवत ने कहा कि यह केवल एक ऐतिहासिक अध्याय का समापन नहीं है बल्कि “राष्ट्र मंदिर”—एक मजबूत, संगठित और समन्वित भारत बनाने की दिशा में अगला कदम है।
भारत की भूमिका से दुनिया में शांति — भागवत
उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भारत मजबूत होता है, तब वैश्विक अस्थिरता कम होती है। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ भारत से अधिक भूमिका निभाने की मांग कर रही हैं।
भागवत ने कहा, “लोग शक्ति के डर से नहीं, आपसी संवाद और सहयोग की भावना से जुड़ते हैं। यही संघ की सोच है।”
एकता और सांस्कृतिक आधार पर देश निर्माण का आह्वान
संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि शुरुआती स्वयंसेवकों ने अनिश्चितता और कठिनाइयों में काम किया, लेकिन उन्होंने परिवर्तन का बीज बोया।
उन्होंने आगे कहा कि भारत की सभी विचारधाराएँ एक ही सांस्कृतिक जड़ से आती हैं और इसलिए राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि है।
“धर्म केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि आपसी संबंधों को जोड़ने वाला सिद्धांत है। हमें समन्वय के साथ आगे बढ़ना होगा।”














