नई दिल्ली — राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के एक नए शैक्षिक मॉड्यूल में 1947 के विभाजन के लिये मोहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस और लॉर्ड माउंटबेटन को ज़िम्मेदार बताया जाने के बाद राजनीतिक विवाद भड़क गया है। मॉड्यूल में विभाजन के कारणों की नई व्याख्या के कारण सियासी दलों ने एक-दूसरे पर तीखे हमले शुरू कर दिए हैं।
कांग्रेस का रुख:
कांग्रेस ने तुरंत पलटवार किया और कहा कि भारत के विभाजन का असली दायित्व आरएसएस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग जैसे हितधारकों पर भी है। पार्टी का कहना है कि विभाजन केवल एक या दो व्यक्तियों के कृत्यों तक सीमित करार नहीं दिया जा सकता और इतिहास को पक्षपातपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना गलत होगा।
बीजेपी का आरोप और प्रतिक्रिया:
वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कांग्रेस के आरोपों पर तीखा प्रहार किया। भाटिया ने कहा कि NCERT ने विभाजन के कटु तथ्यों को पाठ्यक्रम में शामिल किया है और इससे कांग्रेस परेशान है। उन्होंने कांग्रेस व राहुल गांधी पर जिन्ना-सदृश विचारधारा का आरोप लगाया और कहा कि आने वाली पीढ़ियों को विभाजन के वास्तविक कारण जानने का अधिकार है। भाटिया ने यह भी कहा कि इतिहास में जिन्ना द्वारा प्रस्तुत विचारों और उनकी तुष्टिकरण नीति को नकारा नहीं जा सकता और इस बहस से कांग्रेस असहज है।
#WATCH | Delhi | BJP National Spokesperson Gaurav Bhatia says, “…NCERT has made some changes in the textbooks and the truth of partition has been added. The ‘Rahul-Jinnah’ party is very upset with the truth coming out. Rahul Gandhi and Mohammad Ali Jinnah have the same… pic.twitter.com/OEcblwseu5
— ANI (@ANI) August 16, 2025
किस तरह बढ़ा विवाद?
यह विवाद उस संशोधित शैक्षिक सामग्री के प्रकाशित होने के बाद उठ खड़ा हुआ जिसमें 1947 के विभाजन के कारणों पर नए संदर्भ और आकलन शामिल बताए जा रहे हैं। राजनीतिक दलों ने मॉड्यूल के कथित रुख को अपनी-अपनी राजनीति की दृष्टि से देखा और सोशल-मीडिया व सार्वजनिक मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप तेज़ हो गए।
राजनीतिक बयानबाज़ी और इतिहास की व्याख्या
दोनों पक्षों के बयानों में इतिहास की व्याख्या को लेकर मूलभूत मतभेद उभर कर आए हैं — एक ओर कांग्रेस का आरोप है कि कुछ ताकतों ने विभाजन में भूमिका निभाई, वहीं दूसरी ओर भाजपा का तर्क है कि विभाजन के कारणों को उजागर करना जरूरी है और इस पर छुपाने या दबाने का कोई औचित्य नहीं। राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि इतिहास की शैक्षिक सामग्री में बदलाव अक्सर राजनीतिक बहस को भड़काने का सबब बनते हैं।
आगे क्या होने की सम्भावना है?
इस मामले में NCERT व शिक्षा मंत्रालय द्वारा विस्तृत स्पष्टीकरण या आधिकारिक टिप्पणी का इंतज़ार किया जा रहा है। शैक्षिक जगत, इतिहासकारों और शिक्षण संस्थाओं की राय भी इस बहस को आगे प्रभावित कर सकती है। राजनीतिक मोर्चे पर यह विवाद आगामी दिनों में और तेज़ हो सकता है, खासकर जब चुनावी माहौल और संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दे चर्चा में हों।
जब कल आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने लाल किले की प्राचीर से RSS का उल्लेख किया था, तब करोड़ों भारतीयों को गर्व की अनुभूति हुई थी।
दुर्भाग्य से आज कांग्रेस पार्टी और ‘गद्दार’ नकली गांधी परिवार के सदस्य, देशभक्त संगठन RSS पर सवाल उठा रहे हैं, जिस संगठन ने भारत की… pic.twitter.com/Y3Y83BQWXJ
— Gaurav Bhatia गौरव भाटिया 🇮🇳 (@gauravbhatiabjp) August 16, 2025
इतिहास और शैक्षिक पाठ्यक्रमों में संशोधन विषय पर संतुलित, स्रोत-आधारित बहस आवश्यक मानी जाती है — ताकि विद्यार्थियों को ऐतिहासिक घटनाओं के विविध दृष्टिकोण समझने का अवसर मिले और किसी भी कट्टरपंथी या पक्षपातपूर्ण व्याख्या से बचा जा सके।