
Parliament winter session discussion on constitution handbag politics push and shove Rahul Gandhi: संसद का शीतकालीन सत्र शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। 25 दिनों तक चलने वाले इस सत्र में हंगामे, आरोप-प्रत्यारोप और सियासी नाटक ने ज्यादातर समय घेर लिया। संविधान, बाबा साहब आंबेडकर, धक्का-मुक्की कांड और हैंडबैग पॉलिटिक्स जैसे मुद्दों ने पूरे सत्र में सुर्खियां बटोरीं। आइए, इस सत्र की मुख्य घटनाओं और कामकाज पर एक नज़र डालते हैं।
संविधान पर चर्चा और राजनीतिक घमासान
शीतकालीन सत्र की शुरुआत संविधान पर चर्चा के साथ हुई। दो दिनों तक चली इस चर्चा में सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में संविधान निर्माण से लेकर आपातकाल और कांग्रेस के शासनकाल में हुए संविधान संशोधनों का उल्लेख किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए देश पर आपातकाल थोपा था।

इस दौरान बाबा साहब आंबेडकर के सम्मान और अपमान को लेकर भी सत्ता और विपक्ष के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप हुए। बीजेपी ने गांधी मूर्ति के सामने राहुल गांधी के खिलाफ प्रदर्शन किया और तख्तियों पर नारे लिखे। दूसरी ओर, विपक्षी सांसदों ने विजय चौक से संसद भवन तक मार्च निकालकर गृह मंत्री अमित शाह से माफी की मांग की।
धक्का-मुक्की कांड और राहुल गांधी पर केस
सत्र के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में धक्का-मुक्की कांड रहा। संसद परिसर में हुई इस घटना में बीजेपी सांसद प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत चोटिल हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। घटना के बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर केस दर्ज किया गया।
बीजेपी ने राहुल गांधी पर “गुंडागर्दी” का आरोप लगाया, जबकि कांग्रेस ने इसका खंडन करते हुए कहा कि राहुल गांधी किसी को धक्का दे ही नहीं सकते। प्रियंका गांधी ने अपने भाई का बचाव करते हुए इसे राजनीतिक साजिश बताया।

हैंडबैग पॉलिटिक्स बनी चर्चा का विषय
प्रियंका गांधी का “हैंडबैग पॉलिटिक्स” भी इस सत्र की सुर्खियों में रहा। पहले फिलिस्तीन और फिर बांग्लादेश के समर्थन वाले प्रिंटेड बैग लेकर संसद में पहुंचीं प्रियंका गांधी चर्चा का केंद्र बनीं। इसके जवाब में बीजेपी सांसद अपराजिता सारंगी ने प्रियंका गांधी को एक बैग गिफ्ट किया, जिस पर “1984” लिखा था।
यह गिफ्ट 1984 के सिख विरोधी दंगों की याद दिलाने के लिए दिया गया। अपराजिता सारंगी ने इसे कांग्रेस पर हमला करने का एक प्रतीकात्मक तरीका बताया।
कामकाज: अधूरे एजेंडे और कम उत्पादकता
शीतकालीन सत्र के 25 दिनों में लोकसभा में 20 और राज्यसभा में 19 बैठकें हुईं। दोनों सदनों की कुल कार्यवाही लगभग 105 घंटे चली। लोकसभा की उत्पादकता 54% और राज्यसभा की मात्र 41% रही।
सरकार ने इस सत्र में 16-17 विधेयक पेश करने का एजेंडा तय किया था, लेकिन हंगामे के चलते लोकसभा में सिर्फ 5 और राज्यसभा में 4 बिल ही पेश हो सके। लोकसभा में “एक देश, एक चुनाव” पर 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजने का फैसला हुआ।

सत्र में हुए बड़े विवाद और आरोप-प्रत्यारोप
सत्र के दौरान राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने आरोप लगाया कि धनखड़ ने सदन की कार्यवाही के दौरान 30% समय खुद ही बोलने में खर्च किया।
वहीं, प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बयान विपक्ष के निशाने पर रहे। कांग्रेस ने अमित शाह के डॉ. आंबेडकर पर दिए बयान को लेकर बर्खास्तगी की मांग की। इसके जवाब में बीजेपी ने कांग्रेस पर बाबा साहब का अपमान करने के आरोप लगाए।
अधूरी उपलब्धियां और सत्र की समीक्षा
यह शीतकालीन सत्र कार्यवाही के बजाय हंगामे और राजनीति के लिए याद रखा जाएगा। जिस संसद सत्र पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, उसमें जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कम और आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा हुए।
सत्र के अंत में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने समय की बर्बादी के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया। राजनीति के इस खेल में संसद की गरिमा कई बार दांव पर लगी।शीतकालीन सत्र भले ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया हो, लेकिन यह सत्र अपनी गरिमा बनाए रखने में विफल रहा। जनता के हितों से जुड़े मुद्दों पर काम के बजाय सत्र राजनीति और विवादों में उलझा रहा। सवाल यह है कि क्या आने वाले सत्रों में संसद अपनी कार्यक्षमता और उद्देश्य को पूरा कर पाएगी?