नई दिल्ली,भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने संसद के मॉनसून सत्र के समापन पर विपक्ष को घेरा — उनका आरोप है कि विपक्ष ने 130वें संविधान संशोधन बिल और ऑनलाइन गेमिंग (जुआ) बिल का समर्थन कर के भ्रष्टाचारियों व जुआरियों का साथ दिया है। त्रिवेदी ने कहा कि जो बिल भ्रष्टाचार और जुआ—दोनों से निपटने के लिए लाए गए थे, विरोधी दलों ने उन्हें ठुकरा दिया, जिससे सवाल उठते हैं कि क्या वे इन मुद्दों पर सचमुच कठोर हैं।
130वां संशोधन — क्या है मामला?
केंद्र ने संसद में प्रस्तुत 130वां संविधान संशोधन बिल वह प्रावधान लाया है जिसके तहत ऐसे मामलों में — जहाँ किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पर पाँच साल की सजा तक आकर्षित होने वाले अपराध में गिरफ्तारी के बाद 30 लगातार दिनों तक हिरासत रहती है — संबंधित पदाधिकारी को औपचारिक रूप से पद छोड़ना होगा या पद से हटा दिया जा सकेगा, इस तरह की संवैधानिक व्यवस्था प्रस्तावित की गई है। इस संशोधन को लेकर संसद में तीखी बहस रही और विपक्ष का गहरा विरोध देखने को मिला।
गेमिंग बिल — क्या बदलता है?
केंद्र द्वारा पारित या संसदीय कार्य़वाही में लाये गए ऑनलाइन गेमिंग/प्रमोशन और रेगुलेशन बिल का लक्ष्य रीयल-मानि (पैसे वाले) गेमिंग और जुआ-प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना है। बिल के प्रावधानों के बाद बड़े पैमाने पर पैसा-आधारित गेमिंग गतिविधियों पर रोक और सख्ती लागू हो सकती है — जिस पर विपक्ष ने भी तीखा रुख अपनाया और सदनों में हंगामा हुआ। इस बिल पर भी राजनीतिक हमले और बहसें छिड़ी रहीं।
ADR रिपोर्ट का हवाला — कौन सबसे ऊपर?
त्रिवेदी ने ADR (Association for Democratic Reforms) की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्रियों व बड़े नेताओं में आपराधिक मामलों की सूची में रेवंत रेड्डी और एम.के. स्टालिन शीर्ष पर हैं — और यह बताता है कि विपक्ष किन-किन नेताओं की राजनीति बचाने की कोशिश कर रहा है। इससे प्रमाण ढूँढने का दावा कर वे विपक्ष पर सवाल उठा रहे हैं।
राहुल-तेजस्वी पर तंज और धार्मिक यात्राओं का संदर्भ
त्रिवेदी ने विपक्ष के नेताओं — विशेषकर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव — पर भी निशाना साधा और कहा कि वे इन निर्णयों पर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं। उन्होंने विपक्ष के कुछ कार्यक्रमों (जैसे मु़ंगेर/कानक़ाह/मस्जिद/हिंदू मंदिर के दौरे को लेकर) उठ रहे राजनीतिक विमर्शों का हवाला देते हुए सवाल किए कि विपक्ष अपने रुख़ को स्पष्ट करे। इन टिप्पणियों ने सत्र के बाहर भी राजनीतिक बयानबाजी को तेज कर दिया।
संसद का माहौल और सियासी असर
मॉनसून सत्र के अंतिम दिनों में अधिकारी तौर-तरीकों पर भारी पारस्परिक आरोप-प्रत्यारोप और सदनों में नारेबाज़ी का माहौल रहा — विरोधी सदनों में बिलों के विरोध में आवाज उठाते दिखे और भाजपा ने इसे ‘घोटाले व अराजकता बचाने’ का प्रयास बताया। राजनीतिक विश्लेषक इस घटना को आगामी चुनावी संदेश और जन-धारणा पर असर डालने वाली घटनाओं में गिनाते हैं।
दोनों तरफ़ से बयानबाज़ी — आगे क्या?
त्रिवेदी के आरोपों के बाद विपक्ष ने भी अपनी दलीलें और आपत्तियाँ तेज़ की हैं — वे कहते हैं कि संवैधानिक संशोधनों पर जल्दबाज़ी ठीक नहीं और ऐसे बिलों पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता है। वहीं सरकार का दावा है कि कानून के समक्ष किसी के लिए अलग नियम नहीं होना चाहिए और जो भी पदाधिकारी गंभीर आपराधिक मामलों में लगातार हिरासत में रहे, उस स्थिति में संवैधानिक सफाई जरूरी है।














