Thursday, July 31, 2025
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“जब घर बन जाएगा, तभी तो तोड़ने का मज़ा आएगा!”अब अवैध नहीं, ‘प्रायोजित अतिक्रमण’ पर चलेगा विकास का बुलडोज़र!

यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (YEIDA) का क्षेत्र अब ‘भूमि विकास’ का नहीं, ‘भूमि धंधा’ का नया केंद्र बन चुका है। यहां भू-माफिया प्लॉट नहीं, सपने बेचते हैं — वो भी EMI पर!

“फिल्म सिटी के पास! एयरपोर्ट से 10 मिनट! 2500 रु/गज में बुकिंग चालू!”
इन विज्ञापनों ने फेसबुक से लेकर फ़ुटपाथ तक कब्ज़ा कर लिया है। और मज़ेदार बात ये है कि जिन्हें प्राधिकरण की NOC का मतलब भी नहीं पता, वही लोग इस पूरी स्कीम के ‘CEO’ बने घूम रहे हैं।

पहले डर दिखाओ, फिर चुप रहो — यही है नीति!

अब तक हर गुरुवार प्राधिकरण की तरफ़ से बुलडोज़र चलते थे। सोशल मीडिया पर तस्वीरें आती थीं — “देखिए, हमने अवैध कॉलोनी ध्वस्त की!”
रिटायर्ड फौजी भर्ती हुए, ड्रोन उड़ाए गए, GPS से नक्शे बनाए गए। एक्शन मोड ऑन था।

लेकिन अब मंच पर एंट्री हुई एक नए पात्र की — नवागत CEO राकेश कुमार सिंह ने।
जैसे ही कुर्सी संभाली, उन्होंने स्पष्ट कर दिया —
“फिलहाल अवैध कॉलोनियों या अतिक्रमण पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।”

सवाल ये नहीं कि बुलडोज़र नहीं चल रहा, सवाल ये है — किसके इंतज़ार में रोका गया है?

क्या ये भूमाफियाओं को खुली छूट देने का संकेत है —
“जितना बेच सकते हो, जल्दी बेच लो, अभी कार्रवाई स्थगित है”?

या फिर ये एक सोची-समझी रणनीति है —
गरीब आदमी अपने जीवनभर की कमाई से एक छत बनाए, बिजली-पानी लगाए, बच्चे स्कूल भेजे — और ठीक गृह प्रवेश के दिन बुलडोज़र भेजकर सपना चूर कर दिया जाए?

क्योंकि अगर शुरुआत में कार्रवाई कर दी, तो माफिया भाग जाएगा और ग्राहक सतर्क हो जाएगा।
लेकिन जब दीवारें खड़ी हो जाएं, पर्दे लग जाएं, बच्चा साइकिल चला रहा हो — तभी तो तोड़ने का मज़ा दोगुना होगा!

यह सिर्फ ‘अवैध निर्माण’ नहीं, ‘नियोजित धोखा’ है!

बुद्धा सर्किट से लेकर फिल्म सिटी और टप्पल तक अधिग्रहित ज़मीन पर कॉलोनियां उग आई हैं।

विज्ञापन खुलेआम सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं।

प्राधिकरण को सब पता है — लेकिन मौन साध लिया गया है।

इसका सीधा मतलब है — “पहले घर बनाओ, फिर हम तोड़ने आएंगे।”
एकदम सरकारी शिष्टाचार के तहत!

लेकिन सबसे बड़ा सवाल:

क्या ये चुप्पी सिर्फ अफसरशाही की सुस्ती है, या माफिया के साथ मिलीभगत का संकेत?

और अंत में…

जब उस घर की छत टूटेगी, जिसके नीचे सपने पले थे,
जब उस कमरे की दीवारें गिरेंगी, जिसमें बच्चे ने ‘मम्मी-पापा’ कहा था,
तब अधिकारी कहेंगे —
“अवैध निर्माण था, कार्रवाई ज़रूरी थी!”

लेकिन तब कौन पूछेगा —
“जब वो प्लॉट बिक रहा था, तब कहाँ था प्राधिकरण?”
“जब घर बन रहा था, तब किसने आंखें मूँद ली थीं?”

निष्कर्ष:

इस समय YEIDA की चुप्पी, उसकी सबसे मुखर घोषणा है।
अगर कोई नीति नहीं बनी, तो ये खेल चलेगा — सपने बुनने दो, फिर बुलडोज़र चलाओ।

तब तक गरीब आदमी यही कहेगा —
“सरकार की नीति स्पष्ट है —
पहले प्लॉट दिखाओ, फिर सपनों पर बुलडोज़र चलाओ!”

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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